हिन्दी–पखवाडा (हिन्दी भाषा- साहित्य के सम्मान में रचनाएँ)-(२)हिन्दी दिल से लगाइये ! (शंख-नाद - मेरे एक ओज गुणीय काव्य से)
>> Thursday, 13 September 2012 –
घनाक्षरी(छन्द)
ब्लॉग-तन्त्र के किसी दोष के कारण दिनांक एक दिन पीछे प्रदर्शित
(सभी चित्र साभार,मूल चित्रकारों को सधन्यवाद उद्धृत) (१४-०९-२०१२)
हिन्द देश के निवासियों की भाषा, हिन्दी मीत,
वाणी में बसा के इसे दिल से लगाइये !
'चेतना औ प्रेरणा का शंख ' बजा बार बार,
जाग कर आप सारे देश को जगाइये !!
'एक भाषा-रस-धार ' ढार ढार,सींच सींच -
'एकता के बाग ', 'प्रेम-पादप ' उगाइये !
हिन्द का जो खायें अन्न,इसका ही पियें नीर,
हिन्दी ठुकरायें, उन्हें अंग न लगाइये !!१!!
'भारत माता की गोद में,ओ रहने वाले जन!
भाषा भी तो माता की ही आप अपनाइये !!
समझें औ बोलें चाहें,सारे जग की भाषायें,
किन्तु 'राष्ट्र-भाषा के स्वरूप ' को उठाइये !!
भाव,रस,छन्द,अलंकार,गुण-वृत्ति में है-
सजी हिन्दी इसे और सुन्दर बनाइये !!
उर्दू भी, अरबी औ फ़ारसी-प्रधान हिन्दी,
देखो रूठ जाये न यह उसको मनाइये !!२!!
'संस्कृत-सुता ' हिन्दी,'अरबी औ फ़ारसी की
सुता ' उर्दू है, दोनों जन्मीं हैं हिन्द में |
'अग्रजा औ अनुजा ' सी,'गंगा और जमुना' सी
दोनों ही रची बसी हैं,भाव,रस, छन्द में ||
क्रमश:'संस्कृत-अरबी प्रधान हिन्दी-
उर्दू ' जुड़ी हैं दोनों 'प्रेम-अनुबन्ध ' में ||
दोनों को सरल कर, देवनागरी में लिख,
'प्रेम-रस-पान कर ' डूबिये आनन्द में !!३!!
दोनों को ही सरल,सुबोधगम्य बना कर,
'क्लिष्टता के कर्कश काँटों ' से बचाइये !!
जन-जन पढ़ें,सुनें, समझें औ बोलें,लिखें,
'भाव-रस-रोचक साहित्य ' को रचाइये !!
गीत हो,गज़ल हो,कविता हो या कि नज़्म-
तथ्य वाली बात सब लोगों को सुनाइये !!
एक भाषा,एक भाव,एक राष्ट्र-भावना से-
'हर मन का सुमन 'आप ,महकाइये !!४!!
(सभी चित्र साभार,मूल चित्रकारों को सधन्यवाद उद्धृत) (१४-०९-२०१२)
हिन्द देश के निवासियों की भाषा, हिन्दी मीत,
वाणी में बसा के इसे दिल से लगाइये !
'चेतना औ प्रेरणा का शंख ' बजा बार बार,
जाग कर आप सारे देश को जगाइये !!
'एक भाषा-रस-धार ' ढार ढार,सींच सींच -
'एकता के बाग ', 'प्रेम-पादप ' उगाइये !
हिन्द का जो खायें अन्न,इसका ही पियें नीर,
हिन्दी ठुकरायें, उन्हें अंग न लगाइये !!१!!
'भारत माता की गोद में,ओ रहने वाले जन!
भाषा भी तो माता की ही आप अपनाइये !!
समझें औ बोलें चाहें,सारे जग की भाषायें,
किन्तु 'राष्ट्र-भाषा के स्वरूप ' को उठाइये !!
भाव,रस,छन्द,अलंकार,गुण-वृत्ति में है-
सजी हिन्दी इसे और सुन्दर बनाइये !!
उर्दू भी, अरबी औ फ़ारसी-प्रधान हिन्दी,
देखो रूठ जाये न यह उसको मनाइये !!२!!
'संस्कृत-सुता ' हिन्दी,'अरबी औ फ़ारसी की
सुता ' उर्दू है, दोनों जन्मीं हैं हिन्द में |
'अग्रजा औ अनुजा ' सी,'गंगा और जमुना' सी
दोनों ही रची बसी हैं,भाव,रस, छन्द में ||
क्रमश:'संस्कृत-अरबी प्रधान हिन्दी-
उर्दू ' जुड़ी हैं दोनों 'प्रेम-अनुबन्ध ' में ||
दोनों को सरल कर, देवनागरी में लिख,
'प्रेम-रस-पान कर ' डूबिये आनन्द में !!३!!
दोनों को ही सरल,सुबोधगम्य बना कर,
'क्लिष्टता के कर्कश काँटों ' से बचाइये !!
जन-जन पढ़ें,सुनें, समझें औ बोलें,लिखें,
'भाव-रस-रोचक साहित्य ' को रचाइये !!
गीत हो,गज़ल हो,कविता हो या कि नज़्म-
तथ्य वाली बात सब लोगों को सुनाइये !!
एक भाषा,एक भाव,एक राष्ट्र-भावना से-
'हर मन का सुमन 'आप ,महकाइये !!४!!