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हिन्दी के प्रति (१) फिर भी हिन्दी जिन्दा है !



हिन्दी -दिवस पर विशेष 
  (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
नीति का नाटक’ गन्दा है !  फिर भी हिन्दी जिन्दा है !!
‘भारी भरकम पापों’ का ! ‘कर्मों के सन्तापों’ का !!
सिर पर लदा पुलन्दा है ! फिर भी हिन्दी जिन्दा है !!1!!
‘सदाचार के मोती’ का ! ‘दीप’ की ‘जगमग ज्योति’ का-
भाव ज़रा सा मन्दा है ! फिर भी हिन्दी जिन्दा है !!2!!
ए.सी.और कूलरों में ! ‘पाउंड’ और ‘डालरों’ में !!
बिका हुआ हर बन्दा है !  फिर भी हिन्दी जिन्दा है !!3!!
जगमग जगमग चमक रहा ! युगों युगों से दमक रहा !!
जैसे सूरज-चन्दा है ! ऐसे हिन्दी जिन्दा है !!4!!
‘आन’ खोचुका है अपनी ! ‘शान’ खो चुका है अपनी !!
‘यह सोने का परिन्दा’ है ! फिर भी हिन्दी जिन्दा है !!5!!
चारों और ‘बज़ारों’ में ! ‘व्यवसायों’,’व्यापारों’ में !!
पनपा काला धन्धा है ! फिर भी हिन्दी जिन्दा है !!6!!
उलझी ‘मान-विमर्दन’ में ! “प्रसून”, इसकी गरदन में !!

पड़ा ‘विदेशी फन्दा’ है ! फिर भी हिन्दी जिन्दा है !!7!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  – (14 September 2014 at 07:58)  

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-09-2014) को "हिंदी दिवस : ऊंचे लोग ऊंची पसंद" (चर्चा मंच 1737) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हिन्दी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

सुशील कुमार जोशी  – (14 September 2014 at 08:20)  

सुंदर प्रस्तुति । हिंदी दिवस पर शुभकामनाओं के साथ ।

कविता रावत  – (14 September 2014 at 20:57)  

हिंदी दिवस पर बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ..

Suman  – (15 September 2014 at 02:20)  

बिलकुल सटीक कहा है !
समय के साथ सब कुछ परिवर्तन हो रहा है और क्या ?

विभा रानी श्रीवास्तव  – (15 September 2014 at 18:25)  

फिर भी जिन्दा है .... खुबसूरत अभिव्यक्ति

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