हिन्दी के प्रति (१) फिर भी हिन्दी जिन्दा है !
>> Sunday, 14 September 2014 –
गीत
हिन्दी -दिवस पर विशेष
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
‘नीति का नाटक’
गन्दा है ! फिर भी हिन्दी
जिन्दा है !!
‘भारी भरकम
पापों’ का ! ‘कर्मों के सन्तापों’ का !!
सिर पर लदा
पुलन्दा है ! फिर भी हिन्दी जिन्दा है !!1!!
‘सदाचार के
मोती’ का ! ‘दीप’ की ‘जगमग ज्योति’ का-
भाव ज़रा सा
मन्दा है ! फिर भी हिन्दी जिन्दा है !!2!!
ए.सी.और कूलरों
में ! ‘पाउंड’ और ‘डालरों’ में !!
बिका हुआ हर
बन्दा है ! फिर भी हिन्दी
जिन्दा है !!3!!
जगमग जगमग चमक
रहा ! युगों युगों से दमक रहा !!
जैसे
सूरज-चन्दा है ! ऐसे हिन्दी जिन्दा है !!4!!
‘आन’ खोचुका है
अपनी ! ‘शान’ खो चुका है अपनी !!
‘यह सोने का
परिन्दा’ है ! फिर भी हिन्दी जिन्दा है !!5!!
चारों और
‘बज़ारों’ में ! ‘व्यवसायों’,’व्यापारों’ में !!
पनपा काला
धन्धा है ! फिर भी हिन्दी जिन्दा है !!6!!
उलझी
‘मान-विमर्दन’ में ! “प्रसून”, इसकी गरदन में !!
पड़ा ‘विदेशी
फन्दा’ है ! फिर भी हिन्दी जिन्दा है !!7!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-09-2014) को "हिंदी दिवस : ऊंचे लोग ऊंची पसंद" (चर्चा मंच 1737) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हिन्दी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर प्रस्तुति । हिंदी दिवस पर शुभकामनाओं के साथ ।
हिंदी दिवस पर बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ..
बिलकुल सटीक कहा है !
समय के साथ सब कुछ परिवर्तन हो रहा है और क्या ?
फिर भी जिन्दा है .... खुबसूरत अभिव्यक्ति