हिन्दी के प्रति (2) हिन्दी का पखबाड़ा है !
>> Sunday, 14 September 2014 –
(गज़ल-शैली)
(हिन्दी-पखबाड़े में दूसरी रचना)
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
बैनर लगे,
प्रचार का परचम, हमने कस कर गाड़ा है !
आओ जश्न मनायें
भैया, ’हिन्दी का पखबड़ा’ है !!
‘भाषावादी’,
’प्रान्तवादी’ पनपे पहले से ज्यादह- ‘
देश-प्रेम’ को
भूल रट लिया, ’अँग्रेज़ी का पहाड़ा‘ है !!
‘गीता, गंगा,
गायत्री, गौ’ के रच ‘झूठे स्वाँग’ अरे-
‘भारतीय
संस्कृति’ का हमने, ’हर वट-वृक्ष’उखाड़ा है !!
‘पॉपसांग' औ
‘ब्रेकडांस’ के दीवाने हम ऐसे हैं –
मधुर मधुर
तितली-भँवरों का हमने ‘बाग’ उजाड़ा है !!
‘बगिया’में हैं
घुसे ‘विदेशी पशु’, चरते आज़ादी से–
सीमाओं पर खतरा
देखो, टूटा चौहद-बाड़ा है !!
‘प्रजा-तन्त्र
की आड़’ में पनपी’, सामन्ती तानाशाही-
रूप बदल कर अब
भी शायद, ज़िंदा ‘हर रजबाड़ा’ है !!
पुत्र-पुत्रियाँ
हैं उच्छ्रंखल उन्हें देख हम दुखी हैं क्यों-
सच पूछो तो,
सचमुच भैया,हमने उन्हें बिगाड़ा है !!
ताल ठोक कर
लड़ते हैं ये, देखो, माइक-मंचों पर-
‘राजनीति के
मल्लयुद्ध’ का ऐसा जमा अखाड़ा है !!
‘बिल्ली’ रचे ‘स्वयम्बर’लड़ते
हैं सारे ‘कामुक बिल्ले’
जिसका जिस पर दाँव लग गया,‘उस’ ने ‘उसे’ पछाड़ा है !!
भइया हमको
हैरानी है, अपने दोष न देखे हैं –
एक दूसरे पर हम
सब ने, ’कीचड़’ खूब उछाला है !!
कानों पर जूँ
नहीं रेंगती, बहरे “प्रसून” आज हुये-
व्यर्थ है ‘थाप
लगाना’ भाई, ‘टूटा हुआ नगाड़ा’ है !!
बहुत सुंदर ।
रोचक अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...