जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (3) गुरुता जागे !
>> Saturday, 6 September 2014 –
गीत
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

सुधरे अखिल समाज, जो गुरुता अध्यापक में जागे !
जले ज्ञान का दीप, अँधेरा निबिड़ देश से भागे !!
सुखी ज़िन्दगी का मतलब है, माना वित्त कमाना-
पर दौलत के लिये, न अच्छा है नीचे गिर जाना !!
बुने चदरिया अच्छी सुन्दर, अगर चतुर हो बुनकर-
ताने-बाने सुथरे हों, यदि चुने सजीले धागे !
जले ज्ञान का दीप, अँधेरा निबिड़ देश से भागे !!1!!

विद्यालय विद्या के मन्दिर, सारे गुरु पुजारी |
ज्ञान की पूजा अगर सफल हो, सुधरे दुनियाँ सारी ||
मिले सफलता तो विकास में,प्रगति कुलाँचें मारे-
जड़ता पीछे रह जाये औ रहे चेतना आगे !
जले ज्ञान का दीप, अँधेरा निबिड़ देश से भागे !!2!!

सत्य के पंछी पंख पसारे, भरते रहें उड़ानें !
पूरे हों तब सुख के सारे, देखे सपन सुहाने !!
दरिद्रता की छाँव पड़े मत, गाँव-नगर हर्षित हों-
कहलायें मत कहीं नागरिक, दुखिया और अभागे !
जले ज्ञान का दीप, अँधेरा निबिड़ देश से भागे !!3!!

भाग्य-गगन में घोर निराशा के बादल मत छायें !
व्यवहारों में रहे मधुरता, कटुताएँ
मत आयें !!
मिठास सबके सम्बन्धों में, ऐसे आकर उतरे-
जिसे मीठे व्यंजन शक्कर से जाते हैं पागे !
जले ज्ञान का दीप, अँधेरा निबिड़ देश से भागे !!4!!

झील कल्पनाओं की सुन्दर, शुभ कमलों से साजे !
झील कल्पनाओं की सुन्दर, शुभ कमलों से साजे !
उन पर प्यार के भँवरे-तितली आकर नित्य विराजें !!
महक उठे मकरन्द प्रेम का, घृणा की गन्ध न आये !
सारी धरती स्वर्ग-लोक की तरह सुहानी लागे !
जले ज्ञान का दीप, अँधेरा निबिड़ देश से भागे !!5!!
