हिन्दी के प्रति (7) (हिन्दी अपनाइये)
>> Thursday, 18 September 2014 –
घनाक्षरी-गीत
(हिन्दी-पखबाड़े में तीसरी रचना)
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
हिन्द देश के
निवासी, हिन्दी अपनाइये |
और इस देश को यों स्वर्ग सा
बनाइये ||
भाषा है
‘स्वतंत्रता की धुरी’ एक मात्र बन्धु |
भाषा में ही
छुपा हुआ ‘भावना का सुधा-सिन्धु’ ||
एक भाषा, एक लिपि अपना
के प्रेम से यों –
दूसरों की बात सुन, अपनी सुनाइये ||
हिन्द देश के
निवासी,हिन्दी अपनाइये ||१||
भाषायें हैं और
भी जो, उनका भी मान करें |
किन्तु उन्हें
सीख इकार मत अभिमान करें ||
जो भी आये
द्वार उसे आदर दुलार दे के –
'निज स्वत्व’ बचा उसे गले से लगाइये ||
हिन्द देश के
निवासी, हिन्दी अपनाइये ||२||
सभ्यता सभी की
सीख पर-गुण मन धरें –
माना कि विकास
करें, और ज्ञान-धन भरें ||
किन्तु निज
संस्कृति, वाणी, जो विरासत में-
मिली इसे छोड़िये न ‘प्राण’ से बचाइये ||
हिन्द देश के
निवासी, हिन्दी अपनाइये ||३||
‘एकता’, ‘अनेकता’ में, माना मेरे देश
में है |
कोई बात नहीं, माना भेद भूषा वेश में है ||
समझें जो बात
लोग, ‘गूँगे और बहरे’ न हों-
इस लिये हिन्दी भाषा सरल बनाइये ||
हिन्द देश के
निवासी,हिन्दी अपनाइये ||४||
जैसे महासागर
में सारी नदियाँ हों मिली |
भिन्न भिन्न
फूलों से या सारी बगिया हो खिली ||
वैसे सारी
भाषाओं के शब्द मेरी हिन्दी में हैं-
इस लिये हिन्दी निज ‘वाणी’ में बसाइये ||
हिन्द देश के
निवासी,हिन्दी अपनाइये ||५||