वर दायी ताप
>> Saturday, 7 April 2012 –
गजल
कुण्ठा की हिम-शिला पिघलने वाली है
जमी हुयी हर ताकत गलने वाली है ||
देखो तो रोशनी यहाँ होगी जग मग -
बुझी मोमबत्ती फिर जलने वाली है ||
मानवता को हमने कई खुराकें दीं-
इसे जिन्दगी फिर से मिलने वाली है ||
साहस का संचार हृदय में हुआ अभी -
गिरती हालत पुन: सँभलने वाली है ||
आशाओं का डीजल इसमें डाला है -
विश्वासों की गाड़ी चलने वाली है ||
वासुकि निश्चय का प्रयास का मन्दराचल-
मन्थन से हर लहर उछलने वाली है ||
महकी गन्ध बटोरो अपने प्राणों में -
'प्रसून' की यह बगिया खिलने वाली है ||