मौसमके उपहार
>> Monday, 26 March 2012 –
गजल(ब्याजोक्ति)
प्रीति -डोर में हमें बाँधने को आया मौसम |
बिखरे रिश्ते, इन्हें साधने को आया मौसम||
वन में नाचे मोर , बादलोँ को जब देखा है-
बात नहीं यह सत्य,नाचने को आया मौसम||
खट्टे-मीठे फल गदराये , पके रसीले हैं-
लगता है उपहार बाँटने को आया मौसम||
बन्ध तनावों के ये सुंदर कस कर जकड़े हैं-
मानो सारे बन्ध काटने को आया है मौसम||
एक शैड में बैठे हैं वारिश से बचने को-
नफ़रत की खाइयाँ बाँटने को आया मौसम||
खिले "प्रसून" सभी डालों पर ,किलकारी भर के-
सुस्ती वाला जाल काटने को आया मौसम||
vaah bahut achchi kavita likhi hai
वन में नाचे मोर , बादलोँ को जब देखा है-
बात नहीं यह सत्य,नाचने को आया मौसम||
in panktiyon ne to dil moh liya.
बहुत सुंदर गीत....
हार्दिक बढ़ाई।
ek shaid me baithe hain..ye panktiyan mujhe behad pasand aayeen..sadar badhayee aaur amantran ke sath