वो लोग
>> Sunday, 8 April 2012 –
दोहा गीत
देखो तो कितने गए, बीते हैं वो लोग|
कर देते हैं ये उसे,बिल्कुल ही कंगाल|
केवल अपने लिये ही, जीते हैं जो लोग ||
क्या जन जन की प्यास को, बुझा सकेंगे आज-
लुढकी गागर की तरह, रीते हैं जो लोग ??
मीठे मीठे शहद से, बोल रहे जो बोल|
भीतर तीखी मिर्च से, तीखे हैं जो लोग ||
कहते हैं गण-तन्त्र के, हम हैं पालनहार |
कहते हैं गण-तन्त्र के, हम हैं पालनहार |
रक्त पराया जोंक सा, पीते हैं जो लोग ||
'गति लायेंगे ये कभी', हमको है सन्देह |
दौड़ में टंगड़ी मार कर, जीते हैं जो लोग ||
कर देते हैं ये उसे,बिल्कुल ही कंगाल|
"प्रसून"" जिसके घाव को, सीते हैं जो लोग ||