ओ बलदाऊ के भैया ! (‘ठहरो मेरी बात सुनो !’ से )
>> Friday, 24 October 2014 –
गीत
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
तुम्हें
बुलाये देश की माटी, चिन्ताकुल भारत मैया !
टेर सुनो
मोहन-बनबारी, ओ बलदाऊ के भैया !!
देश दुखी है,
हुई अपावन, गंगा-यमुना माई से !
देश दुखी है,
बना है रोगी, नक़ली दूध-मलाई से !!
चारागाह कहाँ
से लायें. सीमेन्ट के जंगल में ?
गौशालायें,
सूनी-विरली, सडकों पर डोले गैया
!
टेर सुनो मोहन-बनबारी,
ओ बलदाऊ
के भैया !!1!!
वित्त्वाद बन गया
बकासुर, घूम रहा मरदूद यहाँ !
डिटर्जेंट
में मिला रसायन, रोज़ मिल रहा दूध यहाँ !!
तामस भोजन, विकृत
भजन से, डूबा देश अमंगल में !
धन के लालच
में डूबे हों, अब पशु-धन के चरवैया !
टेर सुनो मोहन-बनबारी,
ओ बलदाऊ
के भैया !!2!!
विनाश-दानव
वन-बागों को, नित्य रहे हैं खूँद यहाँ !
अधर्म कालिय
नाग बना है, धर्म का मिटा वज़ूद यहाँ !!
प्रदूषणों की
मैल बो रहा, नदियों-तालों के जल
में-
कालिय नाथो, फन
पर नाचो, ओ कान्हाँ, ता-था-थैया !
टेर सुनो मोहन-बनबारी, ओ बलदाऊ
के भैया !!3!!
पाप की
मथुरा-करता शासन, दुराचार का कंस यहाँ !
लगा रहा है
घोर तमोबल, कर सद्बल-विध्वंस यहाँ !!
शंख और चाणूर
पछारो, राजनीति के दंगल
में-
तुम बिन
तीनों लोक में होगा, कौन आज-कल सुनवैया !
टेर सुनो मोहन-बनबारी, ओ बलदाऊ
के भैया !!4!!
आपकी पुकार वो जल्द सुने .....
बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
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