जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (13) कभी पड़े मत इस से पाला !
>> Tuesday, 7 October 2014 –
गीत
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
नक़ली नेता, नक़ली लाला !
यह हराम का चरे निवाला !!
कभी पड़े मत इस से पाला !!
घोर मुनाफ़े का भूखा है, उगल रहा है यह महँगाई !
जमाखोर है नम्बर वन का, नम्बर दो का हातिमताई !!
कोई है ठग राजनीति का, कोई है व्यापार माफ़िया !
घोर अँधेरे इसके मन में, अखबारों में बना उजाला !!
यह हराम का चरे निवाला ! कभी पड़े मत इस से पाला !!1!!
यह किसको क्या दे सकता है, मैले का भण्डार समुन्दर !
केवल अपना पेट भर रहा, चुरा के खाता माल छुछुन्दर !!
इसके अत्याचारों ने है, जन-जन में है कहर ढा दिया !
पुण्य की हर पहँचान बना कर, सब पर मैला पाप उछाला !
यह हराम का चरे निवाला ! कभी पड़े मत इस से पाला !!2!!
केवल अपना स्वार्थ छोड़ कर, इसे किसी का ख्याल नहीं है !
किसी को कितने भी दुःख हों पर, इस को कोई मलाल नहीं है !!
यह लकड़ी का बना मकोड़ा, लगा हुआ है जैसे दीमक !
उस कुर्सी से चिपक गया है, एक बार है जिसे सँभाला !!
यह हराम का चरे निवाला ! कभी पड़े मत इस से पाला !!3!!
इसके व्यवहारों में काँटे, यह फूलों की डाल नहीं है !
यह काई की गँदली दलदल, यह कमलों का ताल नहीं है !!
हफ्ता-चन्दा इसका धन्धा, गोदामों में माल दबाया !
स्विसबैंक में जमा किया धन, सबका पॉकेट-मनी खँगाला !!
यह हराम का चरे निवाला ! कभी पड़े मत इस से पाला !!4!!
झीलों-तालों को सूखा कर, उनमें अपनी फ़सल उगाता !
पेट न भरता इस दानव का, नयन-सुखद हरियाली खाता !!
दुश्मन है यह सुन्दरता का, सत्य और शिव का है दुश्मन !
प्यार की खिली बहार मिटाने, इसने हर पतझर को पाला !!
यह हराम का चरे निवाला ! कभी पड़े मत इस से पाला !!5!!
वाह बहुत सुंदर ।