जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (9) आँसू उनके भी झरते हैं (‘माधुरी’ से)
>> Friday, 3 October 2014 –
गीत
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
जिनके दिल पत्थर होते हैं | आँसू उनके भी झरते हैं ||
दबे हुये पातालतोड़ सा जिनका हृदय पनीला होता |
केवल बाहर की कठोरता- बस ऊपर पथरीला होता ||
पड़े प्रेम की चोट सुहानी, बन जल-धार फूट पड़ते हैं |
जिनके दिल पत्थर होते हैं | आँसू उनके भी झरते हैं ||1||
तपे ताप से सागर-तल जब-बनते रस मय सघन-सघन घन |
मानसून बन बरस-बरस कर-सदा भिगोते घर-आँगन-वन ||
मिला हुआ सन्ताप भूल कर, बन कर नीर बरस पड़ते हैं |
जिनके दिल पत्थर होते हैं | आँसू उनके भी झरते हैं ||2||
अन सुलझी सी एक समस्या, हर पीड़ा की जटिल वेदना |
दर्द और सुख एक बराबर, यदि होती है सजग चेतना ||
मनोभाव हो रसमय बहते, आँखों में आकर रिसते हैं |
जिनके दिल पत्थर होते हैं | आँसू उनके भी झरते हैं ||3||
कभी-कभी तो ज्वार हृदय में, आता और चला जाता है |
सागर-तट सी नयन-कोर को-ताबड़तोड़ भिगो जाता है ||
विचार सीपों जैसे आते, भावों के मोती मिलते हैं |
जिनके दिल पत्थर होते हैं | आँसू उनके भी झरते हैं ||4||
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