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जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (13) ज्योति हम अभिराम ढूँढ़ें !(एक गीत-कई पहलू)

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
भटकने में क्या धरा है, अपने भीतर राम ढूँढ़ें !
तनिक अन्तर को जगा कर, ज्योति हम अभिराम ढूँढ़ें !!
भूख से बच्चे दुखी हैं, रो रहे हैं बिलबिलाते  |
उठा कर कपड़े ज़रा सा, पेट खाली है दिखाते ||
नौकरी मिलती नहीं है, डिग्रियों का बोझ सर पर-
ज़िन्दगी जीने से ख़ातिर, कर सकें भ काम ढूँढ़ें !!
तनिक अन्तर को जगा कर, ज्योति हम अभिराम ढूँढ़ें !!1||
मानसिक संघर्ष करके, तनावों से दुखी हैं हम |
हमें कोई हल बताये, खोजते हैं कोई हमदम ||
ताकि हर कोशिश सफल हो, और खुशियाँ मिलें दो पल-
राय दें, इन उलझनों के किस तरह परिणाम ढूँढ़ें !!
 तनिक अन्तर को जगा कर, ज्योति हम अभिराम ढूँढ़ें !!2||
करें चिन्तन और जानें, यह धरा सारी उसी की |
झील समता की बनाकर, लहर दें सब को खुशी की ||
चाह को मथुरा बना कर, प्राण वृन्दावन बनायें-
आम लोगों में यत्न कर, छबीले घनश्याम ढूँढ़ें !!
तनिक अन्तर को जगा कर, ज्योति हम अभिराम ढूँढ़ें !!3||
जेठ की दोपहर जैसे, गम मिले, अफ़सोस क्यों है ?
भाग्य का ही खेल है सब, खोखली यह सोच क्यों है ??
समय-परिवर्तन की धीरज से करें थोड़ी प्रतीक्षा-
वाटिका ढूँढ़ें प्रगति की, और सुख की शाम ढूँढ़ें !!
तनिक अन्तर को जगा कर, ज्योति हम अभिराम ढूँढ़ें !!4||
वाटिका के लिए चित्र परिणाम
समस्याओं से लड़े हम, कभी जीते कभी हारे |
कभी सोये नींद गहरी, कभी जग क्र गिने तारे ||
प्रयासों के पाँवों में छले पड़े अब सभी फूटे-
काम पूरा हो चुका अब चलो चिर विश्राम ढूँढ़ें !!
तनिक अन्तर को जगा कर, ज्योति हम अभिराम ढूँढ़ें !!5||

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