आयु के वट-वृक्ष
>> Wednesday, 1 October 2014 –
गीत
(वारिष्ट
नागरिक-दिवस पर विशेष)
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
आयु के वट-वृक्ष पुराने |
हम अनुभव में हुये सयाने ||
वसन्त देखे, पतझर देखे |
कई बदलते मंज़र देखे ||
सूखे देखे, पावस देखे-
मरुथल देखे जल-सर देखे ||
सब से कर व्यवहार धैर्य से-
सब से रिश्ते पड़े निभाने ||
आयु के वट-वृक्ष पुराने |
हम अनुभव में हुये सयाने ||1||
कितनी बार अँधेरे आये |
कितने सुख-दुःख हमने पाए !!
पर जीवन से हार न मानी-
हँसे कभी या अश्रु बहाए ||
कभी तपे दिन जेठ मास के-
झेले, झेले बर्फ-सिराने ||
आयु के वट-वृक्ष पुराने |
हम अनुभव में हुये सयाने ||2||
प्यार मिला, नफ़रत भी झेली |
पीड़ा सही, खेल अठखेली ||
जीवन के बदलाव-बाग में-
शूल चुभे औ खिली चमेली ||
परिवर्तन के किसी स्वाद से-
रहे कभी हम क्या अनजाने !!
आयु के वट-वृक्ष पुराने |
हम अनुभव में हुये सयाने ||3||
कितनी बार हँसे औ रोये !
सभी तज़ुर्बे सदा सँजोए ||
चिन्ता के तनाव में जागे-
चिन्ता-मुक्त कभी हम सोये ||
बिना हिचक के हमने गाये-
सभी रसों के गीत-तराने ||
आयु के वट-वृक्ष पुराने |
हम अनुभव में हुये सयाने ||4||