जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (11) मन का रावण जला के देखो !(गीत) (एक व्याजोक्ति) (‘ठहरो मेरी बात सुनो !’ से)
>> Saturday, 4 October 2014 –
गीत
(विजयादशमी पर्व के उत्तर दिवस पर विशेष)
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
सोई भलाई जगा के देखो ! जगी बुराई सुला के देखो !!
फूस का रावण जला रहे हो, मन का रावण जला के देखो !!
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
सोई भलाई जगा के देखो ! जगी बुराई सुला के देखो !!
फूस का रावण जला रहे हो, मन का रावण जला के देखो !!
गंगा में स्नान कर रहे, भूल गये हो मन पखारना |
यहाँ विकारों के जंगल हैं, चाह रहे हो कब उजाड़ना !!
बहुत मलिनता बढ़ी हुई है, और बढ़ी तो धुलना मुश्किल,
सत्य-गगन के सुकर्म-घन से, धार सुधार की है उतरना ||
नक़ली पुण्य-जाल में उलझे, छुपे हुये पापों को देखो !
सब की निंदा करते फिरते, खुद से नज़रें मिला के देखो !!
फूस का रावण जला रहे हो, मन का रावण जला के देखो !!1!!
लोगों के दिल के भीतर अब देखो रावण पनप रहा है !
तम की चादर पसर रही है, सत् का आँचल सिमट रहा है ||
आचरणों की मोंमबत्तियाँ, एक-एक कर बुझाने वाली,
दुराचार की भीषण गर्मी, मोम तो तिल-तिल पिघल रहा है ||
अच्छी बातों का प्रचार कर, व्यवहारों में उन्हें उतारो !
खोई हुई आत्मविश्लेषण-रीति पुन: तुम चला के देखो !!
फूस का रावण जला रहे हो, मन का रावण जला के देखो !!2!!
आज अनुभवी वट-वृक्षों पर, लगी हुई है कितनी दीमक !
पढ़ते मोटे-मोटे पोथे, जला न बुझा ज्ञान का दीपक ||
इतिहासों के आज तलक के, प्रयास सारे विफल हो गये |
कहाँ गये वे कबीर-दादू-नानक सत्य-बोध-उद्दीपक ??
किसी मसीहा के सद्बल की दियासलाई तनिक ढूँढ़ कर,
बुझे कंदीलों को दम देने, कोई तीली जला के देखो !!
फूस का रावण जला रहे हो, मन का रावण जला के देखो !!3!!
तुम्हीं नहीं हो दर्द के मारे, दर्द बसे हैं सब के अन्दर |
हम सब के कर्मों की नदियों, से उपजा है दर्द-समुन्दर ||
पापों की लहरें हैं इसमें, खारे पानी की गहराई-
इसके ज्वार से कौन बचा है ! इसकी लहर घुसी है घर-घर ||
पुण्य के पत्थर-कंकरीट से, रक्षा-बाँध करो तो ऊँचा-
इस सागर का असर न होगा, बिखरी ताक़त मिला के देखो !!
फूस का रावण जला रहे हो, मन का रावण जला के देखो !!4!!
तुमको निर्मल प्यार मिलेगा, क्यों चिन्ता में डूबे-डूबे ?
घोर अँधेरों से निराश हो, क्यों रहते हो ऊबे-ऊबे ??
करो यक़ीन काल-परिवर्तन की सुन्दर आँधी आयेगी |
सुखद विरोधाभासों में तब, पूरे होंगे सब मंसूबे ||
कर्मठ प्रयास वसन्त के हों, पतझर हार मान जायेगा |
बागों में आशा के सुन्दर-सुन्दर “प्रसून” खिला के देखो !!
फूस का रावण जला रहे हो, मन का रावण जला के देखो !!5!!
बहुत सुंदर ।
बढ़िया ग़ज़ल शब्दार्थ देकर आपने अच्छा किया। अज़ाब का एक अर्थ ज़लज़ला भी है :
आये कुछ अब्र कुछ शराब आये ,
उसके बाद आये जो अज़ाब आये।
अब्र माने बादल।