धन तेरस पर दो रचनाएँ !
>> Tuesday, 21 October 2014 –
गज़लिका-गीत
(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
(1) एक
गज़लिका (धन-तेरस) (नई रचना)
अब की धन-तेरस में धन का
अनुचित लोभ न जागे !
बाँटे पुण्य का दीप रोशनी,
पाप-अन्धेरा भागे !!
कुबेर वर दे हर साधक को,
प्रसन्न होकर इस दिन !
सच्चे मन से जीवन जीने, को
जो भी धन माँगे !!
दुर्भाग्य का साया सब के सर
से अब हट जाए-
सौभाग्य मिल जाए उनको, खुश
हों सभी अभागे !!
धन्वन्तरी वरद हों सबको,
कृपा-प्रसाद हमें दें-
सत्कर्मी को मिले स्वास्थ्य
औ, विषम रोग हर भागे !!
“प्रसून” सारे बाग के
विहँसें, दर्द रास्ते भूलें-
हेट निराशा का तम सब को,
दुनिया सुन्दर लागे !!
(2) धन तेरस की वधाई ! (एक पुरानी पिछले वर्ष की रचना)
धन
तेरस की तुम्हें वधाई, दीपावली से पहले !
ऐसा पावन प्रेम जगाये, अबकी यह दीवाली |
धरा और आकाश,पवन, जल, दें सब को खुशहाली ||
हर चहरे पर रहे साल भर, यहाँ खुशी की लाली |
कहीं किसी के मन-आँगन में, गिरे न रातें काली ||
राम करें, पूरे हो जायें, सब के स्वप्न रुपहले ||
धन तेरस की तुम्हें वधाई, दीपावली से पहले !!1!!
धन्वतरि की पूजा का दिन, आज साथियो आया |
यह पूजा सार्थक तभी, यदि, तन-मन स्वस्थ बनाया ||
नियम और संयम से जिसने, हर
आचरण निभाया |
वही व्यक्ति, इस देव-वैद्य को,
समझो, निश्चय भाया ||
चिर आयु-वरदान आज वह, बढ़ कर इन से ले ले ||
धन तेरस की तुम्हें वधाई, दीपावलीसे पहले !!2!!
‘धन-पति कुबेर’ की पूजा का यह
दिन, लोग बताते |
कहते हैं, ‘इस पूजा’ से, सब लोग,
‘धनी’ हो जाते ||
‘धन-लोलुपता’ छोड़, ‘परिश्रम’ से
जो ‘वित्त’ कमाते |
‘अहंकार-मद-हीन अमीरी’ में ‘जीवन’ जो बिताते ||
‘राजयोग’ का पालन करते, ये ‘ज्ञानी अलबेले’ ||
‘धन तेरस’ की तुम्हें ‘वधाई’, ’दीपावली’ से पहले !!3!!
“प्रसून” तुम ईमान बेच कर, धन मत कभी कामाना !
कोई ज़रूरतमन्द फाँसने, मत छल-जाल बिछाना !!
घूस की बंछी में मत मछली, कोई कहीं फँसाना!
भ्रष्टाचार के पंक-मार्ग पर, मत भूले से जाना !!
कभी बनाना मत काले धन से तुम महल दुमहले !!
धन तेरस की तुम्हें वधाई, दीपावली से पहले !!4!!
सुंदर रचनाऐं । दीप पर्व आपको सपरिवार शुभ हो ।