"गुण आ गये हैं नीम के देखो तो बेल में" (देवदत्त "प्रसून")
कितनी हैं ख़ामियाँ यहाँ आपस के मेल में।
मशगूल रिश्ते-नाते हैं छल-बल के खेल में।।
चैनो अमन का सारा खेत इसने चर लिया,
कोर-औ-कसर है राजनीति की नकेल में।
बाप ने बेटे को कभी कैद कर लिया-
बेटे ने बाप को कभी डाला है जेल में।
दौरे सियासत में यहाँ शैतानियत मिली,
दौलत-औ-गद्दी रह गई है इसके फैल में।
कड़वी हैं बेलपत्तियाँ शिव को चढ़ाएँ क्या,
गुण आ गये हैं नीम के देखो तो बेल में।
देखो उजाले ठग रहे, अन्धेरे बाँटते,
कितनी मिलावट देखिए दीपक के तेल में।
इसने वफा के दामनों को मैला कर दिया,
फितरत है ऐसी देखिए नफरत के मैल में।
"प्रसून" तेरे बाग में कोहराम मच गया,
आई हैं कितनी आँधियाँ अपने तुफैल में।
bahut sundar..har sher ke sath chitron ka sanyojan achcha laga...
are you goan mad