टा-टा
>> Sunday, 27 May 2012 –
नव गीत
सड़ी गली कल्पनाओं, तुम्हें टा-टा|
स्वार्थी हीँन भावनाओं, तुम्हें टा-टा||
सीमा हीन कामनाओं,तुम्हें टा-टा||
मेरे मन से निकल जाओ, तुम्हें टा-टा||
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खुदगर्ज बन गये हैं लोग, तुम्हारे कारण |
'परमार्थ' बन गये हैं 'भोग', तुम्हारे कारण||
मुझे न बहकाओ,तुम्हें टा-टा|
सामने से हट जाओ, तुम्हें टा-टा||
मान जाओ -मान जाओ, तुम्हें टा-टा||
सड़ी गली कल्पनाओ, तुम्हें टा-टा||१||
तुम्हीं ने बाँटा है जूनून दूनियाँ में|
तुम्हीं ने बिखेरा खून दूनियाँ में ||
जन- जन को न सताओ,तुम्हें टा-टा||
तरस खाओ-तरस खाओ, तुम्हें टा-टा||
गहरी नींद में सो जाओ, तुम्हें टा-टा||
सड़ी गली कल्पनाओं तुम्हें टा-टा||२||