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आशाओं को नयी गति

कुण्ठा की हिम शिला पिघलने वाली है|
जमी हुई हर ताकत गलने वाली है||

देखो तो रोशनी यहाँ होगी जगमग-
बुझी मोमबत्ती फिर जलने वाली है||

'मानवता' को हमने कई खुराकें दीं -
इसे जिंदगी फिर से मिलने वाली है ||

सहस का संचार हृदय में हुआ अभी -
गिरती हालत पुन्: सँभलनेवाली है||

आशाओं का डीज़ल इसमें डाला है-
विश्वासों की३ गाड़ी चलने वाली है||

वासुकि निश्चय का, प्रयास का मंदराचल-
मन्थन की हर लहर उछलने वाली है||

महकी गन्ध बटोरो अपने प्राणों में-
"प्रसून" की यह बगिया खिलने वाली है||

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  – (13 May 2012 at 07:34)  

अच्छी पोस्ट!
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मातृदिवस की शुभकामनाएँ!

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