आशाओं को नयी गति
>> Sunday, 13 May 2012 –
नयी गज़ल
कुण्ठा की हिम शिला पिघलने वाली है|
जमी हुई हर ताकत गलने वाली है||
देखो तो रोशनी यहाँ होगी जगमग-
बुझी मोमबत्ती फिर जलने वाली है||
'मानवता' को हमने कई खुराकें दीं -
इसे जिंदगी फिर से मिलने वाली है ||
सहस का संचार हृदय में हुआ अभी -
गिरती हालत पुन्: सँभलनेवाली है||
आशाओं का डीज़ल इसमें डाला है-
विश्वासों की३ गाड़ी चलने वाली है||
वासुकि निश्चय का, प्रयास का मंदराचल-
मन्थन की हर लहर उछलने वाली है||
महकी गन्ध बटोरो अपने प्राणों में-
"प्रसून" की यह बगिया खिलने वाली है||
अच्छी पोस्ट!
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मातृदिवस की शुभकामनाएँ!