सुनो पथिक
>> Monday, 28 May 2012 –
उद्बोधन- गीत
प्रीति-डगर के पथिक हो|
शूल-पंथ के पथिक हो||
सुनो तनिक तो तुम अहो!
सुनो तनिक तो तुम अहो!!
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
यों तो दृढ़ता प्रेय है|
अडिग तुम्हारा ध्येय है||
माना चढ़ना श्रेय है||
आगे बढ़ना श्रेय है||
किन्तु नियति के ताप से-
दैव-जन्य संताप से-
यदि तुमको गलना पड़े|
उतर उतर चलना पड़े ||
जैसे गलता हिम, गलो|
उतर उतर कर तुम चलो||
बन कर निर्झर तुम ढलो||
पर हित अवनति में रहो|
बन कर गिरि, सरिता बहो||
सुनो तनिक तो तुम अहो!!१!!
सचमुच भला न दाह है|
दुःख-मय हृदय-प्रदाह है||
सुखद सुमन की राह है||
रस-मय प्रेम-प्रवाह है||
पर यदि जग के पाप से|
लड़ कर अपने आप से||
हो बेबस जलना पड़े-
संयम को छलना पड़े -
स्नेह-दीप से तुम जलो|
देकर अपना दम जलो||
हर कर सारा तम जलो||
त्याग दीप्ति में रत दहो|
प्रतिहिंसा में मत दहो||
सुनो तनिक तो तुम अहो!!२!!
बहुत सुन्दर प्रभावी अभिव्यक्ति....