दिल मेरा
>> Saturday, 24 March 2012 –
गजल
देखो कितना विकल रहा है दिल मेरा |
ज्यों सीने से निकल रहा है दिल मेरा ||
निराश करने वाली भारी चोटों से -
बोझ विरह का कुचल रहा है दिल मेरा||
उनकी वफ़ा न मिली, हो गया यह पत्थर-
यों तो कोमल कमल रहा है दिल मेरा||
आँख में आये भर आँसू के कन देखो-
धीरेधीरे पिघल रहा है दिल मेरा ||
दर्द के नीरस रेगिस्तानी मौसम में-
मरु- कूपों सा सजल रहा दिल मेरा ||
दुःख,सुख के आरोहों और उतारोंसे -
गिर गिर करके सँभल रहा है दिल मेरा ||
बर्फ की सिल्ली से झरना बनने वाला-
बह जाने को मचल रहा है दिल मेरा ||
मिलन की खबरें जब से पड़ीं है कानों में-
अरे बल्लियों उछल रहा है दिल मेरा ||
हास हमारे होठों पर फिर से आया-
धैर्य-पथ पर अचल रहा है दिल मेरा ||
"प्रसून"के खिलने की आयी अब बारी-
बदला मौसम, बदल रहा है दिल मेरा ||