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घनाक्षरी वाटिका |

भारत के सारे पर्व अपनी पौराणिकता की प्रतीकात्मकता  की गरिमा अपने में छिपाये हैं | देश में दुःख दारिद्र्य फैलाने वाली बुराइयां क्या 'नरकासुर' से कुछ कम हैं ? इसी तात्पर्य के साथ-

सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार) 

नर्क-चतुर्दशी –पर्व
अच्छा क्या है, बुरा क्या है, समझे यह जन-जन,
हंस जैसा बोध औ विवेक सिखालाइये |
भटके हों कहीं कोई,सूझ नहीं रहा पथ,
उन्हें गली गली जा के, पन्थ दिखलाइये ||
दूर हों पाखण्ड सारे,मिटें सारे अन्धकार,
कुछ ऐसी रीति सारे देश में चलाइये ||  
मिटे ‘अन्धकार’ चित्त, ‘ज्योति’ से हो जगमग,
सच्चे ‘ज्ञान-दीप’ हर मन में जलाइये ||१||
नर्कासुर-अनाचार-अत्याचार-भ्रष्टाचार-
दानवों को मार मार, निर्बीज कीजिये |
देख कर दीन-हीन दशा साधन से विहीन,
लोगों पे यों दया कर, मन से पसीजिये ||
दूसरों के लिये जीना सीखें और सिखला के,
भुला कर निज पीड़ा, ‘पर पीड़ा’ पीजिये ||
दीपक जला के कुछ, ‘उजाले के तीर’ चला,
‘अँधेरा’ है ‘दैत्य’ इसे आज मार दीजिये ||२||

कोई हो निराश कहीं, कुण्ठा-ग्रस्त और त्रस्त,
गुमसुम हो अकेला उसे पास में बुलाइये |
धीरज बंधा के उसे, आशा औ विशवास जगा,
देकर भरोसा सारे दुखोँ को भुलाइये ||
गिर गिर उठें सब लोग चलते ही रहें,
गिराने की सारी पीड़ा, जा के झुठालाइये ||
मन हों वीराने कहीं, ‘पतझर वाले बाग’
वहाँ पे “प्रसून” जैसी खुशियाँ खिलाइये ||३||

Kailash Sharma  – (4 November 2013 at 06:10)  

बहुत सार्थक और लाज़वाब प्रस्तुति...

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