घनाक्षरी वाटिका |
>> Saturday, 7 December 2013 –
घनाक्षरी
भारत के सारे पर्व अपनी पौराणिकता की प्रतीकात्मकता की गरिमा अपने में छिपाये हैं | देश में दुःख दारिद्र्य फैलाने वाली बुराइयां क्या 'नरकासुर' से कुछ कम हैं ? इसी तात्पर्य के साथ-
सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)
नर्क-चतुर्दशी –पर्व
अच्छा क्या है,
बुरा क्या है, समझे यह जन-जन,
हंस जैसा बोध औ
विवेक सिखालाइये |
भटके हों कहीं
कोई,सूझ नहीं रहा पथ,
उन्हें गली गली
जा के, पन्थ दिखलाइये ||
दूर हों पाखण्ड
सारे,मिटें सारे अन्धकार,
कुछ ऐसी रीति
सारे देश में चलाइये ||
मिटे ‘अन्धकार’
चित्त, ‘ज्योति’ से हो जगमग,
सच्चे ‘ज्ञान-दीप’
हर मन में जलाइये ||१||
नर्कासुर-अनाचार-अत्याचार-भ्रष्टाचार-
दानवों को मार मार, निर्बीज कीजिये |
देख कर दीन-हीन दशा साधन से विहीन,
लोगों पे यों दया कर, मन से पसीजिये ||
दूसरों के लिये जीना सीखें और सिखला के,
भुला कर निज पीड़ा, ‘पर पीड़ा’ पीजिये ||
दीपक जला के कुछ, ‘उजाले के तीर’ चला,
‘अँधेरा’ है ‘दैत्य’ इसे आज मार दीजिये ||२||
कोई हो निराश कहीं, कुण्ठा-ग्रस्त और त्रस्त,
गुमसुम हो अकेला उसे पास में बुलाइये |
धीरज बंधा के उसे, आशा औ विशवास जगा,
देकर भरोसा सारे दुखोँ को भुलाइये ||
गिर गिर उठें सब लोग चलते ही रहें,
गिराने की सारी पीड़ा, जा के झुठालाइये ||
मन हों वीराने कहीं, ‘पतझर वाले बाग’
वहाँ पे “प्रसून” जैसी खुशियाँ खिलाइये ||३||
बहुत सार्थक और लाज़वाब प्रस्तुति...
वाह बहुत सुंदर !