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घनाक्षरी वाटिका |

सरदार बल्लभ भाई पटेल -जयन्ती |
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अंकुश हो स्वार्थ वाले मोटे पेट हाथियों पे,
’धूर्त्त-नीति ऊँटनी’ की नाक में नकेल हो |
‘प्रेरणा की बातियों’ में, जलने के क्षमता हो,
विश्वासों के दीपकों में भरा ‘त्याग-तेल’ हो ||
देश में हो ‘एकता की डोर’ मज़बूत तथा,
सब के दिलों में भेद-भाव-हीन मेल’ हो ||
सम्भव है ऐसा जब, ‘राजनीति-नगरी’ में,
सरदार बल्लभ भाई जैसा ही ‘पटेल’ हो ||१||

‘प्रीति-झील’ की तली में ‘स्वार्थों की ‘पाप-पंक’,
इस को ‘प्रयास वाले हाथों’ से निकारिये |
तैर रहीं भावनायें, भार-हीन, सार-हीन-
जन-गण-मन-क्षोभ, इन को निथारिये ||
खिला ‘एकता का बाग’, फूल हैं अनेकता के,
भाँति भाँति के हैं रंग, इन्हें न उतारिये ||
अपना विकास कर, औरों को भी बढ़ने दें,
दूसरे गिरें जो ऐसी टंगड़ी न मारिये ||२||

राजनीति की व्यवस्था लोक-हितकारी हो यों,
देश की दशा को ऐसा सुन्दर बनाइये |
काँच का नहीं है, ‘लोहे का इरादा’ सीने में है,
सारी दुनियाँ को आप यही समझाइये ||
दीन-हीन, दुखी कोई कुण्ठा-ग्रस्त हों निराश,
ऐसे लोगों को आशा दे, धीरज बंधाइये ||
स्वर्ग उतार कर भारत की धरा पे यों,
सरदार बल्लभ भाई-जयन्ती मनाइये ||३||



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पटेल=मुखिया 

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