घनाक्षरी वाटिका |पंचम कुञ्ज (गीता-गुण-गान) पंचम पादप(योगी)
>> Saturday, 21 December 2013 –
घनाक्षरी
योग का अर्थ तो जुडना है | तन-मन-वचन-कर्म से पूर्णतया जिस
से जुड़ें, उपलब्धि एक सी है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)
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‘प्रेम-योगी’,
‘ज्ञान-योगी’,’कर्म-योगी’, ‘ध्यान-योगी’,
या कि ‘राज-योगी’ सभी एक जैसे होते
हैं |
‘ऊँचे-नीचे पत्थरों’ में,चलते हैं
मस्त होके,
निर्लिप्त, ‘फूलों वाली शय्याओं’ पे
सोते हैं ||
‘पीडाओं का रस’ पीते, ‘मुस्कान’
बाँटते हैं,
सामने किसी के ‘निज रोना’ नहीं रोते
हैं ||
किसी ‘शोक-हर्ष’ का है, इन पे प्रभाव
नहीं,
‘सन्तोष-धागे’ में ‘आनन्द’ ही पिरोते
हैं ||१||
‘ह्रदय’ पे असर नहीं, लेते किसी घटना
का,
अपेक्षाओं-इच्छाओं के होते नहीं दास हैं
|
सफल हुये तो कभी, दम्भ नहीं करते हैं,
विफल हुये तो, खोते नहीं ‘विशवास’ हैं
||
इठलाते नहीं कभी, ‘सम्पदायें’ पाते हैं
जो,
‘विपदायें’ आने आने पे ये, होते न
उदास हैं ||
‘धन’ है ‘निमित्त’ इन्हें, ‘तृष्णा’
से काम नहीं,
‘परम सन्तोष-धन’ इन के तो पास है
||२||
‘राग’ नहीं, ‘द्वेष’ नहीं, ‘लोभ’ का
है ‘लेश’ नहीं,
‘अति भोग-वासना’ में, लिप्त नहीं होते
हैं |
‘मोह-पंक’ में कभी भी, गिर कर फँसे
नहीं,
‘ईर्ष्या की आग’ में, ये तप्त नहीं
होते हैं ||
मन इन का है शुद्ध, होते ‘बोध’ से
‘प्रबुद्ध’,
‘पाप भरी भावना’ से, युक्त नहीं होते
हैं ||
उठे और जगे हुये, रहते हैं ये आठों
पहर’
‘चेतना’ से हीन कभी सुप्त नहीं होते
हैं ||३||
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बहुत खूब वाह !