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घनाक्षरी वाटिका |पंचम कुञ्ज (गीता-गुण-गान) पंचम पादप(योगी)


योग का अर्थ तो जुडना है | तन-मन-वचन-कर्म से पूर्णतया जिस 

से जुड़ें, उपलब्धि एक सी है | 

(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)

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‘प्रेम-योगी’, ‘ज्ञान-योगी’,’कर्म-योगी’, ‘ध्यान-योगी’,
या कि ‘राज-योगी’ सभी एक जैसे होते हैं |
‘ऊँचे-नीचे पत्थरों’ में,चलते हैं मस्त होके,
निर्लिप्त, ‘फूलों वाली शय्याओं’ पे सोते हैं ||
‘पीडाओं का रस’ पीते, ‘मुस्कान’ बाँटते हैं,
सामने किसी के ‘निज रोना’ नहीं रोते हैं ||
किसी ‘शोक-हर्ष’ का है, इन पे प्रभाव नहीं,
‘सन्तोष-धागे’ में ‘आनन्द’ ही पिरोते हैं ||१||

 
‘ह्रदय’ पे असर नहीं, लेते किसी घटना का,
अपेक्षाओं-इच्छाओं के होते नहीं दास हैं |
सफल हुये तो कभी, दम्भ नहीं करते हैं,
विफल हुये तो, खोते नहीं ‘विशवास’ हैं ||
इठलाते नहीं कभी, ‘सम्पदायें’ पाते हैं जो,
‘विपदायें’ आने आने पे ये, होते न उदास हैं ||
‘धन’ है ‘निमित्त’ इन्हें, ‘तृष्णा’ से काम नहीं,
‘परम सन्तोष-धन’ इन के तो पास है ||२||

 
‘राग’ नहीं, ‘द्वेष’ नहीं, ‘लोभ’ का है ‘लेश’ नहीं,
‘अति भोग-वासना’ में, लिप्त नहीं होते हैं |
‘मोह-पंक’ में कभी भी, गिर कर फँसे नहीं,
‘ईर्ष्या की आग’ में, ये तप्त नहीं होते हैं ||
मन इन का है शुद्ध, होते ‘बोध’ से ‘प्रबुद्ध’,
‘पाप भरी भावना’ से, युक्त नहीं होते हैं ||
उठे और जगे हुये, रहते हैं ये आठों पहर’
‘चेतना’ से हीन कभी सुप्त नहीं होते हैं ||३||

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 मेरे ब्लॉग 'साहित्य-प्रसून' पर   नयी करवट (दोहा-ग़ज़लों पर एक काव्य ) में आप का स्वागत है !
        



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