घनाक्षरी वाटिका |पंचम कुञ्ज (गीता-गुण-गान) प्रथम पादप(‘गीता-जयन्ती’ मनाइये)
>> Saturday, 14 December 2013 –
घनाक्षरी
मित्रों ! कल -गीता-जयन्ती' थी | दिन भर समय नहीं मिला किन्हीं कारणों से आज आप के सामने बहुत दिनों बाद इस ब्लॉग पर उपस्थित हूँ नयी विचार-धारा के साथ |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
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कलह-द्वन्द हरना है, और ‘शान्ति’ लाना
है तो,
‘गीता-ग्रन्थ-मंत्र’ सारे जग को
सुनाइये |
निर्लिप्त रह के, कर्म सारे ही निभा के आप,
निर्लिप्त रह के, कर्म सारे ही निभा के आप,
‘सत्य-मूल-‘प्रभु’ को तो अपना बनाइये
||
त्याग मनमाने पन्थ, भेद-दुर्भाव तज,
सारे धर्म छोड़, एक धर्म अपनाइये ||
जन-जन को बतायें, सभी में है ‘एक तत्व’,
और इस तरह से ‘गीता-जयन्ती’ मनाइये
||१||
‘मरुभूमि’ में है ‘मरू वाटिका’
हमारी गीता,
‘वीराने’ में खिले जो, ‘सुगन्ध का
सुमन’ है |
दुनियाँ के दुखोँ में है ‘सुखों का
सन्देश’ गीता,
‘जेठ की गरम लू’ में, शीतल पवन है
||
‘अविवेक-धूप’ में ‘विवेक’ की है ‘ठण्डी
छाँव’,
‘सूखे की धरा’ के लिये, ‘मानसून-घन’
है ||
गीता कोई ‘भाषा’ नहीं, या कि मात्र ‘छन्द’
नहीं,
‘पुस्तक’ नहीं है गीता, ‘हरी का वचन’
है ||२||
सब में है ‘एक बोध’, ‘वेद’ हो या ‘तौरियत’,
‘इंजीर’, बाइबिल’ या फिर ‘क़ुरान’ हो
|
चाहे ‘गुरु ग्रन्थ’हो, या ‘वाल्मीकि-
रामायण’,
‘श्रीमद्भागवत’ या कोई ‘पुराण’ हो
||
सभी में सामान ‘ज्ञान’, मिलेगा ‘सुधी’
जो कोई,
यदि पढ़ता है इसे, वह ‘विवेकवान’ हो
||
छिपा जैसे ‘दही’ में से, ‘नवनीत’ मिलता
है,
‘मन्थन’ करे विवेक ‘मथनी समान हो
||३||
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
नीचे दिया हुआ चर्चा मंच की पोस्ट का लिंक कल सुबह 5 बजे ही खुलेगा।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-12-13) को "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1462 पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर गीता सार !
नई पोस्ट विरोध
new post हाइगा -जानवर
क्या बात है दोस्त लय छंद ताल में गीता ज्ञान कह दिया।
चाहे गीता बांचिये या पढ़िए कुरआन ,
तेरा मेरा (आत्मा -परमात्मा )प्रेम ही हर पुस्तक की जान।
वाह बहुत सुंदर !
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (15-12-13) को "नीड़ का पंथ दिखाएँ" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1462 पर भी होगी!