बाज (एक अप्रकट निहित सत्य)
>> Thursday, 19 July 2012 –
गज़ल (एक् यथार्थ )
गज़ल-कुञ्ज(गज़ल संग्रह) से उद्धृत एक गज़ल
यद्यपि आतंक एक अतीत का इतिहास प्रतीत होता है | किन्तु आज भी
उस के चिन्ह अप्रकट तथा बदले परिवेशों में दिखाई देते हैं | वह जो जलती
भडकी आग थी,अब सुलगती प्रतीत होती है | अपहरण,दुराचार, भ्रष्टाचार,
अनाचार और बलात्कार आदि की खबरें अखबारों के पृष्ठों को आये दिन
रंगती हैं |शैतानी फ़ितरत ही तो आतंक है |


आतंक जैसे उड़ते हुये चील हुए हैं |
जनता के भोले लोग अबाबील हुए हैं ||
जिनके दिलों में स्नेह का न नीर बचा है -
जिनके नयन मानो सूनी झील हुये हैं ||

हैं चित्त जिनके सत्य के सु-ज्ञान से खाली-
मानो अँधेरे में बुझे कन्दील हुये हैं ||


इंसानियत के पाँव में वे लोग चुभे हैं -
रस्ते में पड़ी जंग लगी कील हुये हैं ||

कर के कुतर्क गर्क नर्क कर रहे समाज-
ये लोग ज्यों 'शैतान' के वकील हुये हैं ||


"प्रसून" प्रीति-बेलि की डालों पे जो खिले -
वे वासना-पराग से अश्लील हुये हैं ||

उस के चिन्ह अप्रकट तथा बदले परिवेशों में दिखाई देते हैं | वह जो जलती
भडकी आग थी,अब सुलगती प्रतीत होती है | अपहरण,दुराचार, भ्रष्टाचार,
अनाचार और बलात्कार आदि की खबरें अखबारों के पृष्ठों को आये दिन
रंगती हैं |शैतानी फ़ितरत ही तो आतंक है |
जनता के भोले लोग अबाबील हुए हैं ||
जिनके दिलों में स्नेह का न नीर बचा है -
जिनके नयन मानो सूनी झील हुये हैं ||
हैं चित्त जिनके सत्य के सु-ज्ञान से खाली-
मानो अँधेरे में बुझे कन्दील हुये हैं ||
इंसानियत के पाँव में वे लोग चुभे हैं -
रस्ते में पड़ी जंग लगी कील हुये हैं ||
कर के कुतर्क गर्क नर्क कर रहे समाज-
ये लोग ज्यों 'शैतान' के वकील हुये हैं ||
"प्रसून" प्रीति-बेलि की डालों पे जो खिले -
वे वासना-पराग से अश्लील हुये हैं ||