गज़ल-कुञ्ज(गज़ल संग्रह)-(य)उकाव-कबूतर-(१)देखिये (प्रतीकों में नग्न सत्य}
>> Tuesday, 10 July 2012 –
गज़ल (हकीकत की गज़ल)
उकाबों की सेहतें,पहले से बेहतर देखिये |
डरे, सहमे हकों के हैं कितने तीतर देखिये ||
'जुल्म' के पत्थर से करना चोट उनका खेल है -
चोट खा कर गिर पड़े कितने कबूतर देखिये ||
नुमायश करते हैं मीठे बोल की हम आये दिन-
पैनी नुकीली सोच कितनी दिल के भीतर देखिये ||
'प्रीति-मृगछौने' के तन पर घाव गहरा,दर्द है-
नफ़रतों के शिकारी ने मारा खंज़र देखिये ||
घूमते फिरते आवारा,बाज बागी हो गये |
तन अबाबीलों के घायल लहू से तर देखिये ||
चढाने के लिये कैसे बाग से लायें "प्रसून"-
छुपे हैं ख़ूनी दरिंदे, कई अंदर देखिये ||
जबरदस्त ... प्रभावी गज़ल ... सार्थक चिंतन ...
चित्र बहुत अच्छे चुने हैं अपने विचारों के लिए |
भोली चिड़िया बाज को, समझ रहीं है मीत।
रक्षक ही भक्षक बने, ये दुनिया की रीत।।