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जगता नहीं है आदमी

 
भेरियों के स्वर थके,जगता नहीं है आदमी |
प्रेरणा  के  रंग  में  रंगता  नहीं है  आदमी ||   
भर गयी कटुता है इसके दिलमे,इसके खून में -
प्यार के मधु स्वरस में पगता नहीं है आदमी ||
 
बोल कर मीठे वचन कुछ, काट लेता जेब है- 
किस गली बाजार में ठगता नहीं है आदमी ||

साफ करने में लगे कितने पयम्बर, पीर, गुरु- 
कितना मैला हो गया, मंजता नहीं है आदमी ||

अँधेरे के जाल कितने घने, टूटें किस तरह -
सुबह के सूरज सा क्यों उगता नहीं है आदमी ||
 
बिखरते रिश्ते,"प्रसून" इस टूटते समाज के -
अब किसी भी डोर से बन्धता नहीं है आदमी ||

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