कुछ मुक्तक
>> Friday, 20 July 2012 –
मुक्तक
(१)
इरादा जो करोगे तुम, सफलता क़दम चूमेगी |
रोशनी चाँद-सूरज की तुम्हारें गिर्द घूमेगी ||
यत्न करना न् छोड़ो तुम भले तूफ़ान ही आयें-
कुदालें जतन की ही तो,खान हीरे की खोदेंगी ||
(२)
निगलना इन्हें मुश्किल, ये गले में अटकते हैं ||
राजनीतिक दंगल में कुछ मल्ल ऐसे भी हैं-
जो अपने ही अनुगतों को उठाकर पटकते हैं ||
(३)
विचार जो ज्ञानप्रद मनोहर होते हैं |
वे ही इतिहास की धरोहर होते हैं ||
नीरस मरुस्थल सींच वही सकते हैं -
जिनके मन स्नेह के सरोवर होते हैं||
(४)
वह घर तवाह नहीं वीरान होता है |
शनीचर ही उसका निगह्वान होता है||
काना बाँट करता जो फ़र्क की तराजू से -
जिस घर का बुजुर्ग बेईमान होता है ||
(५)
इतना क्यों आप हमें देखिये सताते हैं ?
बगल में बिठा कर हम आप को पछताते हैं ||
आपको सौंपा हमने हाशिया था लेकिन -
आप पूरे कागज़ पर हक़ अब जताते हैं ||
( ६)
जिनके नयनों की छागल में पानी नहीं है |
आयी रीति प्रीति की निभानी नहीं है ||
कैसा भी हो ऐसा व्यक्ति, हिन्दुस्तान में -
मुझको लगता शुद्ध हिन्दुस्तानी नहीं है||
वाह !
ये तो अब हर जगह
ही नजर आता है
दूर जाने की
जरूरत भी नहीं है
मेरे खुद के घर से
ही ये शुरु हो जाता है
कि
"वह घर तवाह नहीं वीरान होता है |
शानीचर ही उसका निगह्वान होता है||
काना बाँट करता जो फ़र्क की तराजू से -
जिस घर का बुजुर्ग बेईमान होता है ||"
मुखर व प्रखर अभिव्यक्ति ....प्रशंसनीय है ....
विचार जो ज्ञानप्रद मनोहर होते हैं |
वे ही इतिहास की धरोहर होते हैं ||
नीरस मरुस्थल सींच वही सकते हैं -
जिनके मन स्नेह के सरोवर होते हैं||---बहुत सुन्दर बात कही प्रेम से ही प्रेम मिलता है
"वह घर तवाह नहीं वीरान होता है |
शानीचर ही उसका निगह्वान होता है||
काना बाँट करता जो फ़र्क की तराजू से -
जिस घर का बुजुर्ग बेईमान होता है ||"---आगे की पीढ़ी भी उसी के पदचिन्हों पर चलेगी फिर
सभी क्षणिकाएं एक से बढ़कर एक हैं इन दो का तो जबाब नहीं
जिनके नयनों की छागल में पानी नहीं है |
आयी रीति प्रीति की निभानी नहीं है ||
कैसा भी हो ऐसा व्यक्ति, हिन्दुस्तान में -
मुझको लगता शुद्ध हिन्दुस्तानी नहीं है||
वाह ..