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ओ बलदाऊ के भैया ! (‘ठहरो मेरी बात सुनो !’ से )

 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
तुम्हें बुलाये देश की माटी, चिन्ताकुल भारत मैया !
टेर  सुनो  मोहन-बनबारी, ओ  बलदाऊ  के भैया !!
देश  दुखी  है,  हुई  अपावन, गंगा-यमुना माई से !
देश  दुखी  है, बना है रोगी, नक़ली दूध-मलाई से !!
चारागाह  कहाँ  से  लायें.  सीमेन्ट के जंगल  में ?
गौशालायें, सूनी-विरली,  सडकों  पर   डोले  गैया !
टेर सुनो मोहन-बनबारी, ओ  बलदाऊ  के भैया !!1!!
वित्त्वाद  बन  गया बकासुर, घूम रहा मरदूद यहाँ !
डिटर्जेंट में मिला रसायन, रोज़ मिल रहा दूध यहाँ !!
तामस भोजन, विकृत भजन से, डूबा देश अमंगल में !
धन के लालच में डूबे  हों, अब पशु-धन के चरवैया !
टेर सुनो मोहन-बनबारी, ओ  बलदाऊ  के भैया !!2!!
विनाश-दानव वन-बागों को, नित्य रहे हैं  खूँद यहाँ !
अधर्म कालिय नाग बना है, धर्म का मिटा वज़ूद यहाँ !!
प्रदूषणों की मैल  बो रहा,  नदियों-तालों  के  जल में-    
कालिय नाथो, फन पर नाचो, ओ कान्हाँ, ता-था-थैया !
टेर सुनो  मोहन-बनबारी,  ओ  बलदाऊ  के भैया !!3!!
पाप की मथुरा-करता शासन,  दुराचार का कंस  यहाँ !
लगा रहा है घोर तमोबल, कर सद्बल-विध्वंस यहाँ !!
शंख और चाणूर  पछारो,  राजनीति  के  दंगल  में-
तुम बिन तीनों लोक में होगा, कौन आज-कल सुनवैया !
टेर सुनो  मोहन-बनबारी,  ओ  बलदाऊ  के भैया !!4!!


 


विभा रानी श्रीवास्तव  – (24 October 2014 at 06:30)  

आपकी पुकार वो जल्द सुने .....

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