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जून 2014 के बाद की गज़लें /गीत (1) हक़ीकी इश्क़ !

     (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

होता बुलन्दियों में, है शुमार  इश्क़ का !
छूता है आसमान को, मीनार  इश्क़ का !!
हुस्नौ शबाब बेचिए, चाहे ख़रीदिए-
होता नहीं है लेकिन, बाज़ार इश्क़ का !!
होतीं फ़ना जहाँ भी, आशिक़ की हस्तियाँ-
पूजता है ताज़माने, हाँ मज़ार इश्क़ का !!


मिल जाती जब भी मंजिल, हकीक़त की इश्क़ को-
काशाने खुदा जैसा, है दयार इश्क़ का !!
जो अर्श को ज़मीन पर, रख दे उतार कर-
करता है कौन आज यों, इज़हार इश्क़ का !!
मुर्झाया गुल खिला दे, कर दे बहार जिन्दा-
समझा है किसने आजकल, वकार इश्क़ का !!


नापाक हुस्न को किया, कुफ़्रों से रौंद कर-
क्यों आदमी हुआ है, गुनहगार इश्क़ का !!
करना बुलन्द सर को, होशोह्वास में तुम-
 गिरने न कभी देना, दस्तार इश्क़ का !!
इसकी शिफ़ा न कीजिये, बासुकूं मर्ज़ है-
मैं चाहता हूँ होना, बीमार इश्क़ का !!
तुम ढूँढते “प्रसून” हो, सारे जहाँ में इसको-
खुद में किया है मैंने, दीदार इश्क़ का !!

  
   

विभा रानी श्रीवास्तव  – (2 September 2014 at 03:54)  

बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति .... उम्दा रचना

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