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घनाक्षरी वाटिका |पंचम कुञ्ज (गीता-गुण-गान)तृतीय पादप (सुलझी डोर)

(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)  


तृतीय पादप (सुलझी डोर)
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‘माया’ क्या है और कैसे, इस से बचें जो ढंग,
योगीराज कृष्ण ने वे सारे समझाये हैं |
‘प्रभु’ के ‘विराट रूप’ वाले, ‘शीश-महल’ सारे,
अर्जुन ने वे सभी घूम के मंझाये हैं ||
‘मन’ को जलाते हैं जो, ‘भ्रम’ में ले जाते हैं जो,
ऐसे ‘प्रश्न-ज्वाल’ बड़े ढंग से बुझाये हैं ||
भूले विसरे हैं जो भी, ‘उलझनों की झाड़ियों’ में,
भटके हुये हैं  उन्हें ‘रास्ते’ सुझाये हैं ||१||


‘कर्त्तनी सुतर्कों की’ ले, सारे ‘कुतर्क-जाल’,
काटे, ‘मन-मृग’ को जो फांस उलझाये हैं |
‘बोध-विश्लेषणों’ के दोनों करों से सहज,
‘शंकाओं के धागे’ उलझे वे सुलझाये हैं ||
घने कुविचारों के हैं, ‘सघन विजन वन’,
‘तम’ से घिरे हैं वहाँ ‘दीपक’ दिक्झाये हैं ||
‘कुण्ठाओं’ से मिले मुक्ति, युक्ति सूझे बचने की,
‘निराशा’ से कैसे ऐसे ‘मन्त्र’ वे सिखाये हैं ||२||


‘प्रेरणा का शंख’ बजा, ‘चेतना की भेरियों’ से,
‘गहरी नींद’ सोये, ‘आत्म बोध’ वे जगाये हैं |
‘रूप-ब्रह्म’, ‘शब्द-ब्रह्म’, ’अक्षर-ब्रह्म’ आदि सभी,
‘ब्रह्म’ के स्वरूप सभी गीता-ग्रन्थ में बताये हैं ||
‘गीता-ज्ञान’ जिन्हें मिला,वे सभी ‘कुपन्थ’ छोड़,
‘चिन्तन-मनन’ से ‘सुपन्थ’ पर आये हैं ||३||

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