Powered by Blogger.

Followers

घनाक्षरी वाटिका |पंचम कुञ्ज (गीता-गुण-गान) द्वितीय पादप (संस्कृति-प्राण)


द्वितीय पादप (संस्कृति-प्राण)
गीता के समूचे ग्रन्थ में नहीं ‘अविद्या’ कहीं,
केवल है ‘विद्या’ और ‘सत्य’ है-‘सुवोध’ हौ |
निष्काम कर्म का सन्देश दिया इसमें है,
‘कर्म हीनता-विरुद्ध’ एक ‘उद्बोध’ है ||
मन की छाँटे जो ‘मैल’, हरे जो तनाव सारे,
‘मनोव्यथा-हारिणी दवाई’ जैसा ‘शोध’ है ||
‘क्लान्ति’ जो मिटाये सारी,चित्त का निखार करे,
सारे ही ‘विकार’ हरे, ऐसा ‘सत्य-वोध’ है ||१||


वेदों का है सार उपनिषदों में छिपा हुआ,
और उपनिषदों का सार ‘गीता-ज्ञान’ है |
जैसे दूध से मलाई, उससे भी नवनीत,
गीता उस से भी बने घृत के सामान है ||
वेदों की है ‘आत्मा’, है केवल ‘कहानी’ नहीं,
‘भारतीय संस्कृति’ का गीता ही ‘प्राण’ है ||
‘आचारों की सहिन्ता’, है ‘नियम-नियन्ता’ और,
व्यवहारों औ विचारों, नीति का विधान है ||२||
‘निर्लिप्त रह के भोग, त्याग कर ‘अति भोग’,
‘प्रायोगिक योग’ गीता हमें सिखलाती है |
‘पन्थ’ सूझता जो नहीं, ‘कुहांसा’ सा घिरा है तो,
बन कर ‘ज्योति-पुन्ज’, ‘राह’ दिखलाती है ||       
‘निराशा-अज्ञान’ का हो, ‘घटाटोप अन्धकार’,
गीता ‘आशा और ज्ञान’-दीपक जलाती है ||
जीवन रूपी बाग में, ‘जिज्ञासा-भूख’ को मिटाने,
ऐसी ‘समाधान-फल-डालियाँ’ हिलाती है ||३||
=================================         

   

virendra sharma  – (16 December 2013 at 10:15)  

सुन्दर काव्यात्मक आख्यान गीता महात्म्य का।

Post a Comment

About This Blog

  © Blogger template Shush by Ourblogtemplates.com 2009

Back to TOP