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मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य) (घ) (छल-का जाल)(३) ‘छल’ का ‘नीर’







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इन आँखों से छलका ‘नीर’ |

‘आँसू’ हैं या ‘छल’ का ‘नीर’ ??

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जिसके ‘प्यार’ में ‘वफ़ा’ नहीं है |

जिनका ‘मन’ भी सफ़ा नहीं है ||

‘झूठ’ की ‘तीखी गन्ध’ लिये है-

‘साँसों’ से बह चला ‘समीर’ ||

‘आँसू’ हैं या ‘छल’ का ‘नीर’ !!१!!


‘दर्द कपट का’ सहा है कब से !

जब मैने से सच कहा है तुम से ||

तुम्हें चुभ गयी क्यों ‘सच्चाई’-

माथे पर क्यों पड़ी लकीर ??

‘आँसू’ हैं या ‘छल’ का ‘नीर’ !!२!!


किन ‘चोटों’ ने मारी ‘आशा’ ?

‘मोड़ चली मुहँ’, ‘प्यारी आशा’ ||

‘दिल’ में चुभा ‘नुकीला’ कितना-

‘टूटी आस’ का ‘पैना तीर’ ||

‘आँसू’ हैं या ‘छल’ का ‘नीर’ !!३!!


कितना ‘उथला उथला प्यार’ !

‘सूखा पोखर’-‘छिछला प्यार’ ||

हर ‘गहराई’,’स्वार्थ’ ने पाटी-

जाना मत ‘दलदल’ के तीर !!

‘आँसू’ हैं या ‘छल’ का ‘नीर’ !!४!!


“प्रसून” कितने खिले अनमने !

‘कैक्टस’ कितने लगे हैं उगने !!

‘तितली स्नेह की’ कैसे आये !

मन कितना हो उठा अधीर !!

‘आँसू’ हैं या ‘छल’ का ‘नीर’ !!५!!


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