ज्वालामुखी (एक गरम जोश काव्य) (ख) आग का खेल (२) !!धधक रहा‘संसार’अरे !! **********************
            >> Monday, 10 September 2012 – 
            
गीत(प्रतीक-गीत)
(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से,मूल चित्रकारों को स धन्यवाद उद्धृत )
 
 
!! झुलस रहे हैं ‘अवनी-अम्बर’-
!! झुलस रहे हैं ‘अवनी-अम्बर’-
   
   धधक रहा‘संसार’अरे !! 
  घूम रही गलियों में देखो,’काम-दग्ध रति’’पागल है !
घूम रही गलियों में देखो,’काम-दग्ध रति’’पागल है !
  
 
आज ‘महा शिव’ का तप देखो,करने भंग,’अनंग’ चला !
  
‘फैशन के कुछ पवन-झकोरे’,’उद्दीपन’ भड़काते हैं |
  
 
 ‘तन की गोरी,मन की काली’,आज ‘वासना’ दोल रही |‘आकर्षक विष-बुझी कटारी’,और ‘म्यान’से खोल रही ||
 
 
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धधक रहा‘संसार’अरे !!
‘तन की गोरी,मन की काली’,आज ‘वासना’ दोल रही |
 
 
 
 
 
