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"नेह तुम्हारी आँखों में" (देवदत्त प्रसून"

तिर आया है नेह तुम्हारी आँखों में।
खिले सुहाना रूप कमल की पाँखों में।।

खुल जाए मुख जब तुम मोहक हँसी हँसो।
खिलते सुन्दर फूल चमेली शाखों में।।

पा करके मुस्कान होंठ यूँ सजे हैं ज्यों।
उज्जवल हीरे धरे चमकते ताखों में।।

है मीठे उपहार उम्र की बगिया में।
गुच्छे हुए जवान रस भरे दाखों में।।

रूप तुम्हारा नहीं किसी से मिलता है
अतुलनीय तुम प्रिये! हजारों-लाखों में।।

"प्रसून" तेरी याद हृदय मे ऐसे ज्यों
मोती बन गई बून्द सीप की काँखों में।।

Kailash Sharma  – (4 March 2011 at 05:45)  

बहुत सुन्दर..हर पंक्ति ख़ूबसूरत..

mridula pradhan  – (4 March 2011 at 22:40)  

रूप तुम्हारा नहीं किसी से मिलता है
अतुलनीय तुम प्रिये! हजारों-लाखों में।।
kitna sundar likhe hain.

Dr Varsha Singh  – (4 March 2011 at 23:02)  

"प्रसून" तेरी याद हृदय मे ऐसे ज्यों
मोती बन गई बून्द सीप की काँखों में।।

बेहद शानदार.....
लाजवाब .

Dr (Miss) Sharad Singh  – (5 March 2011 at 01:19)  

देवदत प्रसून जी,
एक सुंदर कविता
"नेह तुम्हारी आँखों में" ...बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बधाई।

देवदत्त प्रसून  – (13 March 2011 at 01:46)  

तिर आया है नेह तुम्हारी आँखों में-----रचना को पढ कर उत्साहित करने हेतु धन्यवाद ।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति  – (7 April 2012 at 10:46)  

खूबसूरत गजल..हर शेर लाजवाब

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