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लौट के आया मेरा बचपन--

लौट के आया मर्रा बचपन सपनों में|
पहुँच गया मैं अपने गाँव के अपनों में||
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गरमी में पीपल की छैयाँ दुलराती|
जाड़े में अम्मा अलाव को सुलगाती||
खेल खेल में धींगा मुश्ती होती थी|
गुल्ली डंडा, खो खो, कुश्ती होती थी ||
मर्यादा का कही भी कोई कम नहीं -
हर हरकत में चंचल मस्ती होती थी ||
खेल हमारा चलता रहता बगिया में-
दोपहरी में सारी बस्ती सोती थी||
धुला धप्पी, हाथापाईजब होती|
देर हुयी जब बहुत पिटाई तब होती||
चाची लेप लगाती चूने हल्दी का|
यह इलाज था अपने घर का जल्दी का||
चोट कभी लगती हाथों घुटनों में|
लौट के आया मेरा बचपन सपनों में||१||
याद हमें वे बचपन की घडियाँ आतीं|
वे यादें दर्दों पे मरहम बन जातीं ||
दोस्त लड़ते लड़ते प्यार जताते थे|
जो भी रूठा करते उन्हें मनाते थे||
जाति-धर्म का होता कोईभेद नहीं-
जो भी आता उसको दोस्त बनाते थे ||
घर से जो भी मिला, बाँटते खाते थे |
हर हालत में अपना प्यार निभाते थे ||
हम को लेकर अम्मा दादी लड़ती थीं |
बड़ों के दिल में बड़ी दरारें पडतीं थीं ||
हम बच्चों पर इसका कोई असर नहीं |
उस बचपन के प्यार पे कोई कसर नहीं||
दम न कोई होता था कसमों वचनों में|
लौट के आया मेरा बचपन सपनों में||२||

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