जून 2014 के बाद की गज़लें/गीत (21) चलो-चलो यह देश बचायें ! (‘शंख-नाद’ से)
>> Friday, 14 November 2014 –
गीत
(सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)
चुपके-खुल कर अमन जलाते |
खिलता महका चमन जलाते ||
अशान्ति की जलती ज्वाला
से- सुखद शान्ति का भवन जलाते ||
हिंसा के दुर्दम प्रयास
से-
गांधी का सन्देश बचायें !
चलो-चलो यह देश बचायें !!1!!
भेद-भाव की राजनीति से | जाति-धर्म
की कूटनीति से ||
चालाकी से पाँव पसारे- विषम
भेद की धूर्त्तनीति से ||
अलगावों के प्रचारकों से-
समता के परिवेश बचायें ! चलो-चलो
यह देश बचायें !!2!!
वन-बागों को रोज़ काटते | झील-ताल
को नित्य पाटते ||
लालच की फैली जीभों से- प्रकृति-शोभा
सुखद चाटते ||
भूमि माफ़ियों के हाथों
से-
धरा के केश औ वेश बचायें
! चलो-चलो यह देश बचायें !!3!!
चालवाज़ कुछ मक्कारों से |
बाहर वाले ऐयारों से ||
आस्तीन में किये बसेरा-
भीतर पनपे गद्दारों से ||
खण्ड हुये भारत की गरिमा-
मय यह धरती शेष बचायें !
चलो-चलो यह देश बचायें !!4!!
सार्थक सामयिक चिंतन ...
विचारणीय प्रस्तुति
विनम्र श्रद्धाँजलि । ईश्वर आपकी आत्मा को शाँति प्रदान करे और आप से जुड़े सभी लोगों को इस दुखद: घड़ी में दुख: सहने की शक्ति ।