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ठहरो मेरी बात सुनो ! (सम्बोधन-गीतों का काव्य)(क)‘अन्तरतम’ के प्रति (१) ठहर जा ‘मन-मीत’ मेरे !



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ठहर जा ‘मन-मीत’ मेरे !
सुन तनिक तो गीत  मेरे !!


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गीत क्या, ‘मनुहार’ हैं ये |
‘जगत  के  व्यवहार’  हैं ||
‘शब्द-ध्वनि-अर्थों’ से सज्जित-
‘छन्द-मय उपहार’ हैं ये ||
छिपा इनमें ‘आज’ मेरा-
इन में हैं ‘अतीत’ मेरे ||
ठहर जा ‘मन-मीत’ मेरे !
  सुन तनिक तो गीत मेरे !!१!!

‘दर्द के परिवाद’ हैं ये |
‘अनकहे अवसाद’ हैं ये ||
तोड़ कर ‘हर मौन’ उपजे-
हुये ‘कुछ सम्वाद’ हैं ये ||
‘आयु के पल’ संजोने में-
इन्हें हुये, व्यतीत मेरे ||
ठहर जा ‘मन-मीत’ मेरे !
  सुन तनिक तो गीत मेरे !!२!!

ज्ञात कुछ, अज्ञात हैं कुछ |
दिवस से कुछ, रात से कुछ ||
कुछ ‘कहे वचनों’ से हैं प्रिय-
‘अनकही सी बात’ से कुछ ||
कई कटु, कुछ ‘स्नेह-पूरित’-
‘नीम-रस’, ‘नवनीत’  मेरे |
ठहर  जा ‘मन-मीत’ मेरे !
सुन  तनिक तो गीत मेरे !!३!!

 ‘ह्रदय की वीणा’ के सारे |
‘तार’, ‘चिन्तन’ ने टंकारे ||
‘मौन की डोरी’ कसी, ‘स्वर’-
यत्न  से  हमने  सँवारे ||
बंधा  संयम  तोड़  कर के-
ध्वनित हैं ‘संगीत’ मेरे ||
ठहर  जा ‘मन-मीत’ मेरे !
सुन  तनिक तो गीत मेरे !!४!!




‘मैं’ स्वयं ‘तुझ’ में समाया |
‘दीप्ति’ है ‘तू’, ‘मैं’ हूँ ‘छाया’ ||
जन्म जब भी मिला मुझको-
साथ  ‘तू’  ने  ही  निभाया ||
‘सृष्टि  के  आरम्भ’  में  ही-
‘तुम’  रहे  ‘परिणीत’  मेंरे ||
ठहर  जा ‘मन-मीत’ मेरे !
सुन  तनिक तो गीत मेरे !!५!!


बाँध  ली  ‘तूने’ ‘नियति’ है |
‘सहचरी’  ‘तेरी’  ‘प्रकृति’  है ||
जो ‘तुझे’  मन  से  मना  ले-
उसी  की  निश्चित  प्रगति  है ||
‘ह्रदय’  के  केवल  ‘तुम्हीं’  तो-
‘स्वामी’  हो,  ‘मन-जीत’  मेरे ||
ठहर  जा  ‘मन-मीत’  मेरे !
सुन  तनिक तो गीत मेरे !!६!!
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