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सामयिकी ज्वालामुखी(एक ओजगुणीय काव्य) में नयी रचनायें ‘(सामयिक परिस्थिति’ में !) (क)देश की दशा (२) हमारी दिल्ली !



 (१५ अप्रैल २०१३ कियो छोई सी पांच वर्षीय बच्ची से सामूहिक बलात्कार की घटना पर 
खून के दो आँसू) 


(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)


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उफ़ ! कितनी ‘नाकाम’ हो गयी, आज  हमारी  दिल्ली है !

दुनियाँ में बदनाम  हो  गयी,  पुन:  हमारी  दिल्ली  है !!

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‘यौवन’ मिला ‘सृजन’ करने को, इस को किया कलंकित क्यों ?

‘शैशव’ के ‘भोलेपन’ पर हा ! ‘पाप’  किया है  अंकित  क्यों ??

‘पापी  पिशाच’  ने    ‘पापों    की   ‘सारी  सीमायें’   लांघीं-

‘पावन  बचपन’  ‘मैला’  कर  के उसे किया  आतंकित  क्यों  ??

‘कलि-मल-मलिन’ ‘महापशु’ ने यह  किया  घिनौना  काम बड़ा-

‘भारतीय संस्कृति’  की  जग  में, उड़ी आज क्यों  खिल्ली है ?

दुनियाँ  में  बदनाम  हो  गयी,  पुन:  हमारी  दिल्ली  है !!१!!



‘धूर्त-कुपूत’  ने  ‘गन्दी नाली’ में  ‘निज कुल’ को  डुबा दिया  |

‘पापी’  ने  ‘मलवे’  के  नीचे,  ‘मानवता’  को  दबा  दिया  ||

ज्यों  ‘बौराये सुअर’ ने  ‘कोमल कमल-कली’ को कुचल  कुचल-

अपनी  ‘मैली दाढों’   में   हो,  बेदर्दी   से   चबा   लिया ||

‘अखिल व्यवस्था’ बाग की‘ बैठी  धरे  हाथ पर हाथ है क्या ?

कितनी   ‘ढीली ढाली’  ‘सुस्ती’  ओढ़े   हुये   ‘निठल्ली’  है |

दुनियाँ  में  बदनाम  हो  गयी,  पुन:  हमारी  दिल्ली  है !!२!!



‘आग लगे’  इससे  पहले  तुम, ‘भडकी ज्वाल’  बुझाओ  तो !

‘सत्ता-केन्द्र’   में   भी   ऐसा,  होता  क्यों  समझाओ  तो !!

‘पैनी नज़र’ अगर  नहीं ‘राजा’ की,  ‘प्रजा’ सुरक्षित  कैसे  हो ? 

कहाँ ‘कमी’ है ‘कारकुनों’  में,  जा कर  तनिक  मंझाओ  तो !!

‘विफल व्यवस्था’ ठीक करो तुम,  यह  न  कभी हितकारी  है ! 

‘रेशम  के  शाही  लिवास’  में,  लगी  ‘टाट  की  टल्ली’  है |

दुनियाँ  में  बदनाम  हो  गयी,  पुन:  हमारी  दिल्ली  है !!३!!


‘इन्द्रप्रस्थ’ में ‘इन्द्र’  के सम्मुख,  सिर  पर  ‘नंगा नाच’ हुआ |

‘भारत  की  सुकुमार संस्कृति’  का  हा ! ‘दलन-विनाश’ हुआ ||

कैसे   कहूँ   लाज   आती   है,  इन  ‘घटिया घटनाओं’  पर-

‘मल की आहुति’ पड़ी  ‘हवन’ में, ज्यों  ‘मैला’  ‘आकाश’ हुआ ||

“प्रसून”  के  पौधों  पर  मानों,  बिजली  गिरी  विनष्ट  हुये-

जलीं   ‘कोंपलें,  भावुकता  की’,  पजरी  ‘कल्ली कल्ली’   है |

दुनियाँ  में  बदनाम  हो  गयी,  पुन:  हमारी  दिल्ली  है !!४!!

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