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जून २०१३ के बाद की गज़लें (२) न कर


     (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
 ‘प्रेम-नगरिया’ में रहता है तू, नफ़रत की बात न कर !
‘कपट-मैल’ से मैले, दिल के ये ‘उजले जज्वात न कर !!
हिम्मत कर तू सच कहने की, हमें खुदा ने ताक़त दी-
लड़ना है, दरवाज़े पर आ, पिछवाड़े से घात न कर !!
उल्लू नहीं, आदमी है तू,  छोड़  ‘अँधेरा  दौलत  का’-
अच्छे भले उजाले वाले दिन को ‘काली रात’ न कर !!


दिल के बदले दिल मिलता है, ‘उल्फ़त के बाज़ारों’ में-
दुनियाँ की इस दौलत’ के ‘खोटे सिक्कों’ की बात न कर !!
‘कहर के बादल’ अभी  हटे  हैं, ‘मौत’ यहाँ बरसाई है-
फिर मौसम को ठगने वाली, वह ‘खूनी बरसात’ न कर !!
सत्संगों के नाम  पे  बँटते  ‘मंत्र’  कभी  ‘शैतानों’  के-
‘अन्ध भगत’ बन हर ‘वाणी’ को मन में आत्मसात कर !!
“प्रसून” कह तू नाप- तोल कर, ‘बड़बोलेपन’ में है क्या-
तेरे झूठ की पोल खुले जो, ऐसी कोई बात न कर !!

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