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विवेकानन्द-महिमा



(सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार) 
मित्रों!अपने महाकाव्य 'विवेकोर्मी' के दूसरे सर्ग के कुछ पद यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ | आप का स्वागत है | 
कल या परसों पूरे महाकाव्य का प्रकाशन प्रारम्भ कर दूंगा || आप के द्वारा उस को अपना 
बनाने की अपेक्षा है |

वीर विवेकानन्द जगत में ‘ज्योति’ जगाने आये थे |
‘मानवता के मूल्य’ मर चले, उन्हें जिलाने आये थे ||
‘धर्म’ निराश हुआ था, उसको आस दिलाने आये थे |
‘परमार्थ का और प्रेम का स्वरस’पिलाने आये थे ||
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बंजर ‘मन की धरा’ हो चली, ऊसर ‘चिन्तन’ हुये सभी |
सूने सूने ‘आचरणों के वन औ उपवन’ हुये सभी ||
 और ‘प्रेरणा के भ्रमरों’ के शान्त ‘गुन्जन’ हुये सभी ||
‘जन गण का विशवास’ जगाने, ‘आशा-वसन्त’ को ले कर-
त्याग तपो मय ‘सुरभि-कणों’ से जग महकाने आये थे ||
‘मन की धरती’ पर ‘प्रज्ञा-हल’ और चलाने आये थे |
‘आशाओं के मरुद्यान’ में, ‘सुमन’ खिलाने आये थे ||
‘आत्मतत्व के विचार सब को, सहज दिलाने आये थे |
वीर विवेकानन्द जगत में ‘ज्योति’ जगाने आये थे ||१||
‘पाश्चात्य संस्कृति’ का ‘दुर्दम भोगवाद’ था पनप रहा |
‘अपने लिये संकुचित जीवन’ का विवाद था पनप रहा ||
‘खाओ पियो मज़े लूटो’ का ‘घृणित नाद’ था पनप रहा |
जन जन में ‘तन-वर्ण-भेद’ का दुर्विवाद’ था पनप रहा ||
‘ज्ञान-दीप’ को लिये करों में, उर में ले कर ‘प्रेम अमर’-
वे सब को ‘सभ्यता का पावन पन्थ’ दिखाने आये थे ||
‘मानव में परमात्म तत्व’ है, ‘मंत्र’ सिखाने आये थे |
‘कण कण में बस एक सत्व है’, यही बताने आये थे ||
‘और एकता मानवता है’, हमें जताने आये थे |
वीर विवेकानन्द जगत में ‘ज्योति’ जगाने आये थे ||२||



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