मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(ज)मन का रेगिस्तान |(एक भीषण परिवर्तन)(३)‘मरुद्यान’ कर ‘जतन’ मिलेंगे | (एक रंगीन आशा )
>> Thursday, 6 December 2012 –
गीत(प्रतीक-गीत)
आशा जीवन का 'वास्तविक स्वरूप' है,निराशा नहीं |
हर निराशा एक आशा की जननी है | इस रचना का यही उद्देश्य है | (सारे चित्र 'गूगल-खोज 'से उद्धृत')
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‘बीहड़
रेगिस्तान’ में हम को-
‘मरुद्यान’
कर कर ‘जतन’ मिलेंगे |
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माना यह
‘कट्टर पठार’ है |
यहाँ न ‘जल
की सरस धार’ है ||
इसके
‘तन-मन’ दोनों ‘पत्थर’-
हर
‘कोमलता’ दर किनार है ||
पर इसकी
‘पथरीली छाती’-
पर ढूँढ़ें
तो ‘रतन’ मिलेंगे ||
‘बीहड़
रेगिस्तान’ में हम को-
‘मरुद्यान’
कर कर ‘जतन’ मिलेंगे ||१||
किसी का
‘मन’, ‘दुःख का सागर’ है |
‘अपेय जल’ का
जो ‘आगर’ है ||
‘नदियों’ के
‘दर्दों का संगम’-
‘भीषण
खारेपन’ का घर है ||
इसमें छुपी
‘सीपियों’ में कुछ-
‘मोती’ कर
के ‘मनन’ मिलेंगे ||
‘बीहड़ रेगिस्तान’
में हम को-
‘मरुद्यान’
कर कर ‘जतन’ मिलेंगे ||२||
‘खान कोयले की’, ‘अन्धेरी’ |
‘गली गली’ है ‘तम’ ने घेरी ||
कोई ‘निरापद दीप’ जला कर-
करो ‘उजाला’, करो न देरी ||
इसमें अगर
तलाशोगे तो-
‘हीरे’ कर
के ‘खनन’ मिलेंगे ||
‘बीहड़
रेगिस्तान’ में हम को-
‘मरुद्यान’
कर कर ‘जतन’ मिलेंगे ||३||
मिटे ‘बाग-वन, छैल छबीले’ |
हुये ‘कसैले’, ’स्वाद रसीले’ ||
‘प्रकृति-सुन्दरी’ के आकर्षक-
‘केश-वेश’ हैं ‘मलिन’, सजीले ||
फिर कोई
‘अभियान’ चलाओ-
“प्रसून”
वाले ‘चमन’ मिलेंगे ||
‘बीहड़ रेगिस्तान’ में हम को-
‘मरुद्यान’
कर कर ‘जतन’ मिलेंगे ||४||
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