मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य) (ट)विराग- गीत | (३) ‘छल’ज्यादह, ‘अनुराग’ है कम | (भौतिकवाद पर एक चोट)
>> Thursday, 20 December 2012 –
गीत(प्रतीक-यथार्थ-गीत)
(आजकल 'प्रेम-मैत्री' का भी इस 'मशीनी वित्त्वादी युग' में 'व्यवसायीकरण' हो गया है | दोस्त दोस्त की जेब पर 'नज़र' अधिक रखता है, उसके 'जज्वों' को दिल में कम स्थान देता है | 'मस्तिष्क', 'ह्रदय' पर हावी है |
(सारे चित्र 'गूगल-खोज'से साभार)
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‘मित्रों’ के ‘सीने’ में मिलता -
‘छल’ ज्यादह, ‘अनुराग’ है कम |
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‘गरम जोशियाँ’ नहीं ‘प्यार’ में |
‘फीकापन’ है हर ‘दुलार’ में ||
‘यार’ मिले पर, ‘सच्ची यारी’-
नहीं मिली है, किसी ‘यार’ में ||
‘सुलगी गीली लकड़ी’ से ये-
‘धुआँ’ अधिक है,‘आग’ है कम ||
‘मित्रों’ के ‘सीने’ में मिलता -
‘छल’ ज्यादह, ‘अनुराग’ है कम ||१||
‘आचरणों’ में ‘बेतरतीबी’ |
‘अखलाकों’ में ‘बेतहजीबी’ ||
घुमा फिरा कर नहीं कहूँगा-
लोगो सुन लों, ‘बात’ है ‘सीधी’ ||
‘व्यवहारों’ के ‘धरातलों’ पर-
‘जंगल’ ज़्यादह, ‘बाग’ हैं कम ||
‘मित्रों’ के ‘सीने’ में मिलता -
‘छल’ ज्यादह, ‘अनुराग’ है कम ||२||
‘कान फोड़ते संगीतों’ में |
‘धर्म-सभाओं’ के ‘गीतों’ में ||
‘दिन’ में है ‘व्यवधान’ है रहा-
‘रात’ में ‘विघ्न’ पड़ा ‘नीदों’ में ||
‘होड़’ मची है, ‘आवाजों’ की-
‘शोर’ अधिक है, ‘राग’ है कम ||
‘मित्रों’ के ‘सीने’ में मिलता -
‘छल’ ज्यादह, ‘अनुराग’ है कम ||३||
‘हुलियारों’ की ‘दुर्मति’ देखी |
हर ‘होली’ की ‘दुर्गति’ देखी ||
‘कलह-वैर की आग’ में जलती-
‘साँची प्रीति’ की ‘किस्मत’ देखी ||
एक-दूसरे पर उछली जो-
‘कीचड़’ ज्यादह, ‘फाग’ है कम ||
‘मित्रों’ के ‘सीने’ में मिलता -
‘छल’ ज्यादह, ‘अनुराग’ है कम ||४||
‘तितली-भँवरे’ आकर लौटे |
बेचारे, ‘दुःख’ पाकर लौटे ||
‘नागफनी’ के इन ‘फूलों’ से-
अपने ‘पर’, ‘नुचवा’ कर लौटे ||
‘रूप छबीला’, इन ‘फूलों’ में-
‘महका हुआ’ ‘पराग’ है कम ||
मित्रों’ के ‘सीने’ में मिलता -
‘छल’ ज्यादह, ‘अनुराग’ है कम ||५||
देख देख, ‘मुरझाई कलियाँ’ |
‘भँवरे’ दुखी हैं, दुखी ‘तितलियाँ’ ||
‘काँटों’ से भर गयीं आज कल-
“प्रसून” की ये ‘महकी बगियाँ” ||
‘घायल पंखुड़ियों’ में अब तो-
‘महका हुआ’ ‘पराग’ है कम ||
मित्रों’ के ‘सीने’ में मिलता -
‘छल’ ज्यादह, ‘अनुराग’ है कम ||६||
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प्रसून जी आपकी पोस्ट सुन्दर भावनाओं से भरी होती है बस थोडा फॉण्ट छोटा कर लीजिये. बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति बधाई फाँसी : पूर्ण समाधान नहीं
बढ़िया, साधुवाद !!