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मुकुर(यथार्थवादी त्रिगुणात्मक मुक्तक काव्य)(झ)ऊँचे रिश्ते ‘प्यार’ के | (३) ‘प्यार’ से निज ‘नयन’ भरना ! (दुःख-एक साथी)


'दुःख', 'जीवन' का 'निर्माण-स्रोत' है, और 'प्रेम' का 'उत्पत्ति-स्थल' | 'प्रेम' का 'निखार' 'दुःख-की गंगा' के जल से ही होता है | 'संसार' 'दुःख' का 'खारी सागर' है, और यही 'रत्नाकर' है |

 (सारे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार )
         
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‘हृदय’ में ‘निश्छल सचेतन’ |
ले, बना कर, ‘स्वच्छ निज मन’ ||
‘मीत मेरे’ है निवेदन-   
‘प्यार’ से, ‘निज नयन’ भरना !!
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मैं, ‘विचारों के सृजन’ का-
कर रहा हूँ यत्न बन्धु !
‘प्रकृति की परियों’ ने देखो-
भरा इसमें, 'भाव-सिन्धु' ||
‘गीत’ भी मेरे’ हैं ‘उनके’ |
है ‘उन्हीं’ के, ‘स्वप्न मन के’ ||       
तुम, ‘प्रशंसा, या कि निन्दा’-
‘मीत मेरे’ है निवेदन-   
जो करो ‘उनकी’ ही करना ||
‘प्यार’ से, ‘निज नयन’ भरना !!१!!

‘जिन्दगी की मरुधरा’ का-
‘दर्द’ से यों तोड़ ‘सीना’ |
क्या पता, किसका कहाँ तक-
बह चुका कितना ‘पसीना’ !!
‘जीवय’ का ‘सुख-चैन’ खोया |
तब ‘सुकृति का बीज’ बोया ||  
तुम, ‘विकृति के नेत्र’ से अब-
मत ‘कलुषता-कीट’ धरना !!
‘प्यार’ से, ‘निज नयन’ भरना !!२!!

‘अश्रु की अन्दृश्य धारा’-
‘गान’ बन कर बह रही है |
‘प्रीति के जिज्ञासु’ बन, सुन-
क्या ‘सन्देशा’ कह रही है ||
‘द्वेष का चोला’ उतारो !    
‘अमृत-जल’ से ‘ताप’ वारो !!
‘स्नेह-आँचल’ में छुपाये-
झर रहा है, ‘शान्त झरना’ |
‘प्यार’ से, ‘निज नयन’ भरना !!३!!

तुम्हें ‘सुख की सेज सुन्दर-  
मिल गयी है, जानता हूँ |
और ‘सुख’ से ‘भाव’, पागल’-
हो गये हैं मानता हूँ ||
किन्तु, ‘यह जग’, ‘निमिष-भंगुर’ |
कौन ‘कृति’ है, यहाँ ‘स्थिर’ !!
‘मृत्यु’ किसकी ‘दास’ है कब !
है सभी को यहाँ मरना ||
‘प्यार’ से, ‘निज नयन’ भरना !!४!!

किन्तु, मरने से पूर्व तुम-
सीख लो, ‘जी भर के जीना’ !
‘सुख-दुःख’ दोनों सहो, यह-
सीख लोगे यदि ‘करीना’ ||
तो न ‘जीवन’, ‘बोझ’ होगा |
‘चित्त’ में वह ‘ओज’ होगा ||
‘अँधेरों’ में भी, ‘उजाले’-
जान जायेंगे ‘निखरना’ ||
‘प्यार’ से, ‘निज नयन’ भरना !!५!!


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