डोर तुम्हारे हाथों में (देवदत्त प्रसून)
>> Saturday, 19 March 2011 –
गीत
मेरी साँस की डोर तुम्हारे हाथों में ।
है दामन का छोर तुम्हारे हाथों में ।।
प्यासा जैसे रहा हो कोई सावन में -
खडा लिये उम्मीद जैसे आँगन में ।।
तुम आये मन भीग उठा, आनन्द मिला -
मैं हूँ हर्ष विभोर, प्रेम सौगातों में ।
नाच उठे ज्यों मोर सघन बरसातों में ।।1।।
लम्बी बिरह के बाद तुम्हारी पहुनाई ।
जैसे बादल हटे पूर्णिमा खिल आयी ।।
बिखरा सुन्दर हास,धरा के आँचल में -
ज्यों खुश हुए चकोर , चाँदनी रातों में ।।2।।
मिलन की वीण से पीडित मन बहलाओ ।
तार प्यार के धीरे धीरे सहलाओ ।।
अँगुली का वरदान जगे मीठी सरगम ।
छुपे हैं मीठे शोर, मधुर आघातों में ।
डूबी हर टंकोर ,मृदुल सुर सातों में ।।3।।
मैंने मन की कह ली, तुम भी बोलो तो ।
मेरे कानों में भी मधु रस घोलो तो ।।
है मिठास मिसरी सी कितनी स्वाद भरी -
हे प्रियतम चितचोर , तुम्हारी बातों में ।
सुख मिल गयाअथोर ,स्नेह के नातों में ।।4 ।।
"प्रसून "तेरी याद इस तरह मन में है -
मीठी मीठी गन्ध महकती सुमन में है ।।
कोई सुन्दर मोती मानों सीप में हो -
उतरे जैसे हंस बगुल की पाँतों में ।
या शबनम की बूँद कमल की पाँतों में।।5।।
है दामन का छोर तुम्हारे हाथों में ।।
प्यासा जैसे रहा हो कोई सावन में -
खडा लिये उम्मीद जैसे आँगन में ।।
तुम आये मन भीग उठा, आनन्द मिला -
मैं हूँ हर्ष विभोर, प्रेम सौगातों में ।
नाच उठे ज्यों मोर सघन बरसातों में ।।1।।
लम्बी बिरह के बाद तुम्हारी पहुनाई ।
जैसे बादल हटे पूर्णिमा खिल आयी ।।
बिखरा सुन्दर हास,धरा के आँचल में -
ज्यों खुश हुए चकोर , चाँदनी रातों में ।।2।।
मिलन की वीण से पीडित मन बहलाओ ।
तार प्यार के धीरे धीरे सहलाओ ।।
अँगुली का वरदान जगे मीठी सरगम ।
छुपे हैं मीठे शोर, मधुर आघातों में ।
डूबी हर टंकोर ,मृदुल सुर सातों में ।।3।।
मैंने मन की कह ली, तुम भी बोलो तो ।
मेरे कानों में भी मधु रस घोलो तो ।।
है मिठास मिसरी सी कितनी स्वाद भरी -
हे प्रियतम चितचोर , तुम्हारी बातों में ।
सुख मिल गयाअथोर ,स्नेह के नातों में ।।4 ।।
"प्रसून "तेरी याद इस तरह मन में है -
मीठी मीठी गन्ध महकती सुमन में है ।।
कोई सुन्दर मोती मानों सीप में हो -
उतरे जैसे हंस बगुल की पाँतों में ।
या शबनम की बूँद कमल की पाँतों में।।5।।
बहुत सुन्दर रचना!
होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
bahut badiya shringarik rachna...
बहुत बढ़िया