बंजर दिल की धरती।
>> Monday, 28 March 2011 –
ह्कीक़त की एक गज़ल
प्यार का फूटा नहीं है ,एक अंकुर देखिये।
दिल की धरती हो गयी है,कितनी बंजर देखिये।।
खाद,पानी 'प्रेरणा' के हो गये हैंसब विफल-
आचरण की स्थली अब बहुत ऊसर देखिये||
सबके जज्वातों की चोटों का असर मुझ पर हुआ-
दर्द का छलका है आँखों में समुन्दर देखिये ||
कल तलक थीं रोशनी की धुंधली उम्मीदें मगर-
आज फिर छाया हुआ कोहरे का मंज़र देखिये||
मैंने सोचा था कि उनको दोस्त का दूं मर्तबा-
पर उन्होंनेपीठ पर मारा है खंज़र देखिये||
'प्रसून'अंगों से लगेजो गगन बेली की तरह-
जोड़ कर सम्बन्ध पीते,लहू शातिर देखिये||
bahut sundar kaha hai...
प्यार का फूटा नहीं है ,एक अंकुर देखिये।
दिल की धरती हो गयी है,कितनी बंजर देखिये।