क्यों ?-क्यों नहीं ??
>> Sunday, 27 March 2011 –
सवालिया गज़ल
अन्धेरे का जाल जब इतना विकराल है।
फिर हमारे हाथों में क्यों नही मशाल है??
वर्षों तक शोषण से संघर्ष होते रहे--
जोंकें आज फिर क्यों इतनी बहाल हैं ??
नसीहत,हक़परस्ती लिक्जी है किताबों में -
फिर क्यों झूठ के दरिंदे निहाल हैं??
चमकीली खोखली सहेजी गयीं सीपियाँ-
पैरों के नीचे क्यों मोती और प्रवाल हैं??
कारूँ या कुबेरोंके पुजारी कंचन में -
डूबे,क्यों इनके दिल प्यार से कंगाल हैं??
बरसे हैं बरसों से,समाधान के ये घन-
अभी तक क्यों न बुझे ये जलते सवाल हैं??
खुशामद के जंगल में,चाटुकार सियार खुश-
भेडिये,खूँख्वार, मक्कार खुशहाल हैं||
भूखे खरगोश, हिरण घूम रहे व्याकुल से-
लोमड़ समेटे कुछ टेंटों में माल है||
मुर्झाये मुर्झाये हैं कमल के"'प्रसून"क्यों ?
मैले कुचैले क्यों तालों में शैवाल हैं??
बरसे हैं बरसों से,समाधान के ये घन-
अभी तक क्यों न बुझे ये जलते सवाल हैं??
....बहुत खूब ! लाज़वाब प्रस्तुति...