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क्यों ?-क्यों नहीं ??

अन्धेरे का जाल जब इतना विकराल है।
फिर हमारे हाथों में क्यों नही मशाल है??
वर्षों तक शोषण से संघर्ष होते रहे--
जोंकें आज फिर क्यों इतनी बहाल हैं ??


नसीहत,हक़परस्ती लिक्जी है किताबों में -
फिर क्यों झूठ के दरिंदे निहाल हैं??
चमकीली खोखली सहेजी गयीं सीपियाँ-
पैरों के नीचे क्यों मोती और प्रवाल हैं??
कारूँ या कुबेरोंके पुजारी कंचन में -
डूबे,क्यों इनके दिल प्यार से कंगाल हैं??
बरसे हैं बरसों से,समाधान के ये घन-
अभी तक क्यों न बुझे ये जलते सवाल हैं??
खुशामद के जंगल में,चाटुकार सियार खुश-
भेडिये,खूँख्वार, मक्कार खुशहाल हैं||
भूखे खरगोश, हिरण घूम रहे व्याकुल से-
लोमड़ समेटे कुछ टेंटों में माल है||
मुर्झाये मुर्झाये हैं कमल के"'प्रसून"क्यों ?
मैले कुचैले क्यों तालों में शैवाल हैं??

Kailash Sharma  – (29 May 2012 at 07:53)  

बरसे हैं बरसों से,समाधान के ये घन-
अभी तक क्यों न बुझे ये जलते सवाल हैं??

....बहुत खूब ! लाज़वाब प्रस्तुति...

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