"अनुराग कहाँ है" (देवदत्त प्रसून)
>> Saturday, 19 March 2011 –
गीत
हीर का अनुराग कहाँ है? राँझे का वो त्याग कहाँ है? मृत्यु वरण कर साथ न छोड़े, ऐसी उर में आग कहाँ है?।।१।। भीगी पलकोँ में जो गाये, पीडा में जो स्वत्व भुलाये।। जो विषाद में हास पिरोये , ऐसा मधुरिम राग कहाँ है ?।।२।। कहाँ सती की अटल तपस्या? रीति प्रीति की बनी समस्या। कहाँ गया फ़रहाद का परिश्रम? वह शीरी बेदाग कहाँ है ?।।३।। हँस-हँस कर काँटोँ पर चलना प्रियतम के संग वन में रहना।। जल कर अग्नि परीक्षा दे कर- तपे सो सत्य सुहाग कहा है ?।।४।। |
अरे वाह!
एक दिन में दो रचनाएँ पढ़ने को मिलीं!
बहुत बढ़िया रचना लगाई है आपने!