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देख कर हर आदमी दंग होता है

देख कर हर आदमी दंग होता है।
जब किसी बेटी का खुला अंगहोता है।।
रति के इशारो पर नाचता है बेचारा--
बदनाम फिर भी अनंग होता है।।
मेनका को रोको दिगंबर नर्तन से-
कौशिक का संयमअब भंग होता है।।
इंसान हो इंसान के बच्चे उठाओ मत-
यह किसी भेड़िये का ढंग होता है।।
इंसान बस वही है "प्रसून" जिसके--
इंसानियत का जज्वा संग होता है।।

Kailash Sharma  – (22 March 2011 at 01:35)  

बहुत सार्थक और भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर

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