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(खुद को मत बहलाएँ !) ‘ठहरो मेरी बात सुनो’ से !

गंगा-स्नान/नानक-जयन्ती(कार्त्तिक-पूर्णिमा) की सभी मित्रों को वधाई एवं तन-मन-रूह की शुद्धि हेतु मंगल कामना !
                           (सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार)
                                 
प्रदूषणों से इसे बचा कर, मन इसमें नहलाएँ ! 
आज प्यार की गंगा हम सब, मिल कर स्वच्छ बनाएँ !!
भेद-भाव से परे सदा है, पावन गंगा रहती !
सब की प्यास बुझाती है यह, सब के हित है बहती !!
इस गंगा की तरह हृदय हम, अपना व्यापक कर लें-
जो भी आये प्यार से मिलने, अपना उसे बनाएँ ! 
आज प्यार की गंगा हम सब, मिल कर स्वच्छ बनाएँ !!1!!
गंगा की लहरों में हम सब, दोष चित्त के धो लें !
प्रगति करें, पर मत गंगा में कड़वे विष-रस घोलें !!
तरक्कियों में अपराधों को हम मत पलने दें अब-
विकास के श्रापों से बच कर, खुद को तनिक उठाएँ ! 
आज प्यार की गंगा हम सब, मिल कर स्वच्छ बनाएँ !!2!!
गंगा में डुबकियाँ लगा कर, पाप सदा धोते हैं !      
रोज़ नहाते सुबह-शाम पर, पाप न कम होते हैं !!
दान-पुण्य की नौटंकी का यहाँ बोलबाला है !
मन पर पाखण्डों के गँदले, हम मत दाग़ लगाएँ ! 
आज प्यार की गंगा हम सब, मिल कर स्वच्छ बनाएँ !!3!!
भजन-भाव में मैल घुल रहा, देखो साँझ-सकारे !
गंगा में दम कहाँ रह गया, इतने पाप निखारे !
सच्चे चिन्तन-मनन से बढ़के, कोई भजन नहीं है !
मिथ्या आराधन-नाटक से, खुद को मत बहलाएँ ! 
आज प्यार की गंगा हम सब, मिल कर स्वच्छ बनाएँ !!4!!




Suman  – (6 November 2014 at 08:33)  

सच्चे चिन्तन-मनन से बढ़के, कोइ भजन नहीं है !
मिथ्या आराधन-नाटक से, खुद को मत बहलाएँ !
बेहतरीन बात कही है सच्चे चिंतन मनन से न कोई भजन है न प्रार्थना है !
सुन्दर रचना है बधाई !

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